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शिक्षक दिवस

शिक्षक दिवस के पर्व पर, 
करते हैं गुरुजन को नमस्कार, 
अपने दोनों हाथ जोड़कर, 
दर्शाते हैं गुरु से मिले संस्कार। 
नतमस्तक होकर बताते हैं, 
कि, 
गुरु की महिमा है अपरंपार, 
गुरु ही मिटाते अज्ञानता का अंधकार, 
गुरु का आशीर्वाद बनाता है हमें उदार, 
गुरु से ही सीखते हैं हम शिष्टाचार। 
 
कच्ची मिट्टी को ढालकर, 
घड़े सा परिपक्व हैं बनाते। 
सोने को तपाकर, 
आभूषण सा मूल्यवान हैं बनाते। 
बीज को सींचकर, 
फलदायी पेड़ सा अनुशासित हैं बनाते। 
चन्दन को घिस घिस कर, 
गुणवान बना महकाते। 
गुरु ही अपना ज्ञान बाँटकर, 
जीवन की हर परीक्षा में अग्रिम हैं बनाते। 
 
अगर न होते गुरु तो कैसे बनते, 
अर्जुन, चन्द्रगुप्त, आदि विशेष। 
अगर गुरु न होते तो कैसे छोड़ते, 
अँग्रेज़ हमारा देश। 
अगर गुरु न होते तो कैसे बढ़ाते, 
उत्थान की तरफ़ हम स्वदेश। 
अगर गुरु न होते तो कैसे पहुँचाते। 
अंतरिक्ष तक हम अपना देश, 
अगर गुरु न होते तो कैसे बनाते, 
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अव्वल अपना देश। 
अगर गुरु न होते तो कैसे दर्शाते, 
अंतर्राष्ट्रीय खेलों में स्वदेश। 
गुरु तुम हो सर्वोपरि, 
तुम ही हो, ब्रह्मा, विष्णु और महेश। 

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