नवरात्रि
काव्य साहित्य | कविता डॉ. अंकिता गुप्ता1 Oct 2022 (अंक: 214, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
आ रहीं हैं जगदम्बा, आ रहीं हैं महारानी,
आ रहीं हैं काली, आ रहीं हैं राजरानी।
आप ही हैं, महिषासुर विनाशिनी,
आप ही हैं, दुर्गे माता सिंघासनी।
सबके बिगड़े काम बनाकर,
माता भक्तों पर प्यार बरसातीं।
सुख समृद्धि घर के द्वार पर लाकर,
जन जन का मन हर्षातीं।
मन से ईर्षा द्वेष भगाकर,
कष्टों को मैया दूर मिटातीं।
अन्न, धन, धान्य, देकर,
बच्चे जैसा माँ पालतीं।
हमारी ग़लतियों को भुलाकर,
जीवन के, माँ, पाठ सिखलातीं।
नयी ऊर्जा संचार कर,
सद्भावना का मार्ग दर्शातीं।
लालच की इस बग़िया में,
माता पुण्य की सुंगध महकातीं।
मन के अंदर का द्वन्द्व मिटाकर,
माँ तुम सबका जीवन सवारतीं।
छोटी छोटी कन्याओं में,
माता अपना रूप दर्शातीं।
पूरी हलवा का भोग लगाकर,
माता आशीर्वाद देकर जातीं।
नवरात्रों के इस अवसर पर,
आओ मनाये जश्न मिलकर,
नाचें, गायें, खेलें डांडियाँ,
भक्तों की,
ख़ुशियों से भर जाये झोलियाँ।
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