इशारा
काव्य साहित्य | कविता सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’15 Jan 2020
पल-पल
दिन प्रति दिन
मृत्यु की तरफ़
बढ़ते जा रहे हैं।
मुट्ठी में बंद रेत की
तरह
कस कर समय को
पकड़ने की कोशिश करता हूँ
पर
वह
सरकता जा रहा है,
फिसलता जा रहा है
हाथ से।
मैं उसे
हर रोज़
देखता हूँ
ढलते सूरज में,
गहराते अंधकार में,
खिलते फूल में
जलती चिता में।
घटता बढ़ता चाँद
कभी-कभी
उसकी तरफ़
इशारा करता है,
पर
अपनी समस्याओं में उलझा मैं
समझ नहीं पाता।
हर वह चीज़
जो नश्वर है
समय और मृत्यु
की तरफ़
इशारा करती है।
डर नहीं रहा हूँ मैं
समय के रहस्य से,
उसके तिलस्म की
तरफ़ इशारा कर रहा हूँ।
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