हलवा
बाल साहित्य | बाल साहित्य कहानी रचना श्रीवास्तव13 Mar 2014
एक छोटी सी लड़की थी उसका नाम था अन्विक्षा। बहुत प्यारी थी वो। पर थोड़ी नटखट भी थी। खेलने में उस को बहुत मजा आता था। कल्पना की दुनिया में रहती थी। माँ पापा की दुलारी थी। पर उस में एक कमी भी थी उस को टालने की आदत थी, जब भी माँ कोई काम कहती तो बोलती अभी करती हूँ पर उसका अभी कभी नहीं आता। माँ उस को जब समझती तो कहती “माँ कल कर लूँगी” - और भाग जाती खेलने।
उसके स्कूल में इम्तिहान आने वाले थे माँ कहती अन्विक्षा पढ़ लो तो उसका वही रटा-रटाया जवाब देती कल पढ़ लूँगी।
“अरे बेटा इम्तिहान सर पे हैं तुम टालो मत कितना सारा पढ़ना है चलो पढ़ो।” पर अन्वी को कहाँ सुनना होता था।
एक दिन माँ ने कहा “अन्विक्षा, जानती हो तुम्हारी नानी क्या कहती थी।”
अन्विक्षा बोली “क्या?”
माँ ने कहा “कहती थी काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में परलय होएगी बहुरि करेगा कब।”
पर अन्विक्षा को कहाँ सुनना होता था उस के पास तो हर बात का जवाब होता था बोली - “माँ नानी को मालूम नहीं इसको ऐसे कहते हैं आज करे सो काल कर काल करे सो परसों जल्दी जल्दी क्यों करता है अभी तो जीना बरसों।”
माँ बेचारी कुछ कह नहीं पाती। बहुत दुखी होती। सोचती क्या करूँ इस लड़की का।
अन्विक्षा को हलवा बहुत पसंद था। एक दिन जब वो खेल के आई तो माँ से बोली, ”माँ आज हलवा बना दो न।”
माँ कुछ काम कर रही थी, “बोल बेटा आज तो बहुत काम है कल बना दूँगी।”
अन्विक्षा ने कहा, “ठीक है” और कमरे में चली गई।
दूसरे दिन अन्विक्षा ने कहा, “माँ तुम ने कहा था आज बना दोगी बना दो न।”
माँ ने फिर कहा, “ओहो बेटा, मैं तो भूल गई आज मुझे बाजार जाना है कल बना दूँगी।”
इसी तरह से अन्विक्षा रोज़ हलवा बनने को बोलती माँ कोई न कोई बहाना बना के टाल देती। इस तरह ७ दिन बीत गए। आठवें रोज़ जब अन्विक्षा सो के उठी तो देखा की मेज पे ८ प्लेट हलवा रखा है। अन्विक्षा की खुशी का तो ठिकाना नहीं था। वो फटाफट ब्रश करके खाने बैठी।
उसने पहली प्लेट, दूसरी प्लेट बहुत मन से खाई तीसरी भी खा ली। चौथी थोड़ी मुश्किल से खाई फिर पाँचवी तो खा नहीं पाई। माँ से बोली, “माँ अब नहीं खाया जाता।”
माँ ने कहा- “अरे बेटा थोड़ा और खालो तुम को तो बहुत पसंद है।”
“नहीं मँ अब नहीं खा सकती”, अन्विक्षा बोली।
“अन्विक्षा देखो तुम को ये हलवा कितना पसंद है पर तुम ज्यादा नहीं खा सकती। यदि यही हलवा एक प्लेट रोज़ मिलता तो तुम आराम से खा लेती क्यों है न? इसी तरह से पढ़ाई भी है तुम एक साथ ज्यादा नहीं पढ़ सकती जब 8 दिन का हलवा तुम एक दिन में नहीं खा सकती तो 8 दिन की पढ़ाई कैसे एक दिन में कर पाओगी। इसीलिए रोज़ का काम रोज़ करना चाहिए। टालना नहीं चाहिए।”
अन्विक्षा को बात समझ में आगई, इस दिन के बाद से अन्विक्षा ने कभी भी बात को टला नहीं। रोज़ का काम रोज़ करती थी, अब वो सभी की प्यारी बन गई और माँ बहुत खुश थी।
कहानी से शिक्षा - इस कहानी से ये शिक्षा मिलती है की रोज़ का काम रोज़ करना चाहिए कल पे टालना नहीं चाहिए।
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