बुधिया सोचती है
काव्य साहित्य | कविता रचना श्रीवास्तव13 Mar 2014
बुधिया सोचती है
काश के वो चार आने
उसने मुनिया को दे दिए होते
जो उसने
कम्पस खरीदने को माँगे थे
सी दी होती उसकी फटी फ्रॉक
जो आज
स्कूल से आने के बाद
सीने वाली थी
काश के उसकी कॉपी पर
चढ़ा दी होती जिल्द
थकान के कारण
रोज कल पर टालती रही थी वो
उस दिन मेले में
दिला दिया होता
उसको बर्फ का गोला
कितना रोई थी
मुनिया उसके लिए
बुधिया सोचती है
ये सारे काम
अब वो कभी न कर पायेगी
बुधिया सोचती है
कल मुनिया और उसके दोस्तों को
शोर मचाने पर
नाहक ही उसने डाँटा था
अब इस बस्ती में
कभी न गूँजेंगी
इनकी आवाज़ें l
दर्द के इस सन्नाटे में
हर घर चीख रहा है
बुधिया सोचती है
काश के मुनिया आज भूखी रह गई होती
और इन चीखों में शामिल हो जाता है
उसका करुण क्रन्दन भी
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