मुझ को पंख चाहिए
काव्य साहित्य | कविता रचना श्रीवास्तव3 May 2012
चिड़िया रानी चिड़िया रानी
तुम रोज पेड़ पर आती हो
पंचम सुर में नजाने ये
गीत कौन से गाती हो
दाना चुग के चुप के से
फुर फुर कर उड़ जाती हो
पास आओ एक बात बताओ न
कहाँ से लाई ये सुन्दर पंख
मुझको ये समझाओ न
वालमार्ट है या टारगेट
चिल्ड्रन्स प्लेस या टोयाज़ आर अस
किस दुकान से पर लाती हो
नाम उस का बताओ न
मै भी खरीद के पंख लाऊँगा
संग तेरे मै उड़ जाऊँगा
दूर गगन की सैर कर के
चाँद तारों के छू आऊँगा
बात मेरी सुन के
तुम क्यों इतना मुस्काती हो
तुम्हारे पास हैं पंख
इस लिए इतराती हो....
बात नहीं है ये प्यारे
दुकान पर मिलते नहीं
है ये पंख हमारे
ईश्वर की है देन ये
कुदरत का ईनाम
हम को दिए पंख
तुम को बुद्धि ज्ञान
समझ गया मैं बात तुम्हारी
अलग अलग है पहचान हमारी
मै धरा का राजा हूँ
तुम हो गगन की रानी
दोनों की उडान अलग
बात यही है सयानी
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