मुझे माँ के पास सोना है
बाल साहित्य | बाल साहित्य कहानी रचना श्रीवास्तव3 May 2012
प्यारे बच्चों मैंने अन्विक्षा के बारे मे बताया था न आज आप को उसकी एक और बात बताती हूँ। अनवी (अन्विक्षा) हाँ प्यार से हम उसको अनवी कहते हैं जब ५ साल की हुई तो उसकी माँ उसके लिए एक बेबी लाने वाली थी। माँ ने कहा की "मैं जानती हूँ की मेरी बेटी अकेला महसूस करती है तो हम आप के साथ खेलने के लिए एक भाई या बहन लाने वाले हैं आप को क्या चाहिए भाई या बहन।"
इतना सुन के अनवी बहुत खुश हो गई बोली, "माँ मुझे तो भाई ही चाहिए वो मेरे साथ खेलेगा मैं उस को राखी बाधूँगी उसको खूब प्यार करूँगी और माँ वो मुझे गिफ्ट भी तो देगा।"
अनवी की बात सुनके माँ बोली, "बेटा बहन भी तो आप के साथ खेलेगी फिर भाई ही क्यों?"
“माँ भाई को मैं राखी भी बाँध सकती हूँ न।"
माँ जानती थी अनवी के पास हर बात का जवाब होता था।
फिर दिन बीतने लगे और वो दिन भी आ गया अनवी की प्रार्थना भगवान ने सुन ली उसको एक भाई हुआ अनवी बहुत खुश हुई।
उसने जब उसको देखा तो बोली, "माँ ये इतना छोटा क्यों है?
"अरे बेटा ये अभी तो आया है तो छोटा ही होगा धीरे-धीरे बड़ा होगा न तुम्हारी तरह।”
अनवी कुछ बोली नहीं पर थोड़ा दुखी हो गई क्योंकि उसने सोचा था कि इतना बड़ा होगा कि उसके साथ खेल सकेगा, क्योंकि उसने इस से पहले किसे छोटे बच्चे को नहीं देखा था। अनवी का सारा उत्साह ठंडा हो गया।
भाई का नाम स्वरित रखा गया। माँ थोड़े दिनों मैं स्वरित को ले के घर आ गई।
घर आ के अनवी को सब कुछ बदला-बदला सा लगा उस के कमरे मैं भाई का क्रिब लगा दिया गया अनवी जो हमेशा माँ के पास सोती थी अब भाई सोने लगा था। उसको पापा के साथ सोना होता था, कभी-कभी वो कहती भी पापा, "मुझे माँ के पास सोना है।" वो भाई को प्यार बहुत करती थी पर कभी-कभी उसको लगता की स्वरित ने उस की सारी जगह ले ली है।
घर मे जब भी कोई आता स्वरित से खेलता उस को प्यार करता अनवी को भी करता पर जयादा ध्यान स्वरित पे ही रहता। अनवी को बहुत बुरा लगता। माँ बीच-बीच में अनवी को भाई के बारे मे बताती उसकी हरकते दिखाती। पर अनवी को जयादा मजा नहीं आता।
"माँ माँ" अनवी ने बुलाया।
"क्या है बेटा बोलो” माँ ने कहा।
"माँ यहाँ आओ देखो मैंने क्या बनाया है।"
बेटा मैं स्वरित को नहला रही हूँ अभी नहीं आ सकती बाद में देखूँगी।
अनवी चुप हो गई। अनवी के पापा लैब से आए और स्वरित के साथ खेलने लगे। माँ ने देखा की अन्विक्षा दूर बैठ के चुप-चाप पापा को स्वरित के साथ खेलते देख रही है। माँ ने स्वरित को पापा के पास छोड़ा और अनवी के पास आ के बोली, “क्या बात है बेटा आप ऐसे चुप से क्यों बैठे हो।"
अनवी ने कहा, "माँ जब से स्वरित आया है सभी उसी में लगे रहते हैं। पापा भी आते ही उसी के साथ खेलने लगते है मुझे तो देखते ही नहीं पूर्णिमा मौसी भी अब मुझे ज्यादा प्यार नहीं करती। वो भी सवारित के साथ खेलने में लग जाती है। और आप भी अब मेरे बुलाने पे आती नहीं, हमेशा स्वरित के काम ही लगी रहती हैं। माँ स्वरित ने आ के मुझे अकेला कर दिया है, अब मुझको कोई भी प्यार नहीं करता। केवल मामा और मौसा ही मेरे साथ खेलते हैं।”
माँ ये सब सुन के अवाक रह गई उनकी छोटी सी बेटी उनको अचानक बहुत बड़ी लगने लगी। माँ ने अनवी को गले लगा लिया और उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे। वो रोते हुए बोली बेटा, “ऐसा नहीं सोचते। माँ पापा की तो तुम दुलारी हो, भाई अभी छोटा है न इसी लिए उसका ध्यान रखना होता है। तुम भी जब छोटी थी न हम इसी तरह से तुम्हारी भी देखभाल करते थे।”
“अच्छा बेटा तुम ये देखो” कहके माँ ने उसका जो बचपन का विडियो बनाया था, उसको दिखाया। देख के अनवी बहुत खुश हो गई, “अरे माँ ये मैं हूँ तुम तो मुझे नहला रही हो और यँ पे आयल लगा रही हो, ओहो माँ वही सब जो स्वरित के लिए करती हो वही सब मेरे लिए भी कर रही हो। माँ अब मी समझ गई हूँ की भाई छोटा है जैसे इस मैं इस में छोटी हूँ।” और अनवी हँसती हुई माँ के गले लग गई।
माँ के दिल से एक बोझ हल्का हुआ। उस दिन के बाद से माँ पापा इस बात का बहुत ध्यान रखते कि अनवी को अकेला न लगे। अनवी को भी अब अपने भाई से कोई शिकायत नहीं थी। वो भाई के साथ खेलती उसका सारा काम करती और बहुत प्यार करती!!
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