शोर
काव्य साहित्य | कविता रचना श्रीवास्तव3 May 2012
चहुँ ओर है शोर बहुत
भीतर बाहर हर ओर
तभी सुनाई नहीं देती
हिमखंड के पिघलने की आवाज़
गाँव के सूखे कुँए की पुकार
धरती में नीचे जाते
जल स्तर की चीख
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