शरद ऋतु
काव्य साहित्य | कविता रचना श्रीवास्तव3 May 2012
ग्रीष्म में तपते
साये, जलते मन
सुलगती हवाएँ
शरद ऋतु के आगमन पे
हर्षित हो जायें
गुलाबी ठण्ड की
आहट लिए
प्रकृति का करता सिंगार
शरद ऋतु की सुषमा
है शब्दों से पार
श्वेत नील अम्बर तले
नव कोपलें फूटती है
कमल कुमुदनियों
की जुगल बंदी से
मधुर रागनी छिड़ती है
भास्कर की मध्यम तपिश
सुधा बरसाती चांदनी
धरती के कण कण में
प्रेम रस छलकाती है
मौसम की ये अँगड़ाई
विरह प्रेमियों के हृदय में
टीस सी उठाती है
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अपनों के बीच भी कहाँ सुरक्षित नारी है
- अलविदा
- कल, आज और कल
- दर्द घुटन और औरत
- दुआ
- दोहरा जीवन जीते हैं हम
- नूतन वर्ष
- प्यार को जो देख पाते
- प्रेम बाहर पलेगा
- बटवारा
- बदलना चाहो भी तो
- बुधिया सोचती है
- माँ की कुछ छोटी कवितायें
- मुझ को पंख चाहिए
- मैं कुछ कहना चाहती हूँ
- मौत
- ये कैसी होली है
- विस्फोट
- शरद ऋतु
- शोर
- समीकरण
- हथेली पर सूरज
बाल साहित्य कविता
बाल साहित्य कहानी
नज़्म
कहानी
स्मृति लेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं