अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

पेटीकोट की ओट में

मियाँ सांसद हों तो बेग़म विधायक क्यों न हों? चौधरी विधायक हों तो चौधरानी मेयर क्यों न हों? लालाजी मेयर हों तो ललाइन पार्षद क्यों न हों? 

यानी, सत्तासुख का तो असली मज़ा तभी है जबकि दालान में मियाँ, चमचों की दरबार लगाकर अपनी ज़नानी हुक़ूमत का रोब ग़ालिब कर रही हों। 

चुनांचे, विधायक चौधरी को यह बात रास आ गई हाय चौधरानी की ग़ैरहाज़िरी में उनकी चमचियाँ उनकी ख़िदमत में कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ रही हैं। चौधरी को इस बात से कोई गुरेज़ नहीं है कि चौधरानी रात का डिनर अपने मेहमान स्वास्थ्य मंत्री के साथ प्रेस कॉन्फ़्रेंस के बहाने उनके साथ लांग ड्राइव पर जाने वाली हैं। 

लालाजी के मज़े ही मज़े हैं। वैसे तो वे विधान सभा से बरख़ास्त चल रहे हैं; लेकिन, उनके सत्तासुख भोगने में कोई कमी नहीं आई है। उन्होंने अपने मेयर का पद सियासी तिकड़म खेलकर ललाइन को सौंप दिया है। परदानशीं और हयादार ललाइन तो अंतःपुर का सुख भोगने में ही ख़ुद को धन्य मान रही हैं। पर, लालाजी हैं कि ज़िला राजनीति में ललाइन की मुहर का भी भरपूर इस्तेमाल करने में कोई चूक नहीं करते। जब किसी अस्पताल का शिलान्यास करना होता है तो वे ललाइन को आगे कर देते हैं और सार्वजनिक मंच पर उन्हें पीछे से चिकोट-चिकोट कर लहूलुहान करते हुए अपनी बात उनकी ज़बान से उगलवाने में बड़ी महारत हासिल है। बहरहाल, ललाइन तो लालाजी की इस अदा पर वारी जाती हैं। 

सो, जिन्हें चुनाव हारकर दुनिया की नज़र में सिर्फ़ पेंशन-सुख भोगना मयस्सर है, उन्हें आप सत्तासुख से वंचित कदापि मत मानिए। अपनी प्यारी पेटीकोट की ओट में बैठकर उन्हें सियासी चाल चलने से कोई नहीं रोक सकता। विधायक न रहकर भी उनकी आमदनी में पेट्रोल पंपों, सरकारी ठेके और गैस एजेंसियों से बेहद बरकत हो रही है। उधर एमपी सा’ब अपने चौधरी रेस्तरां और प्रॉपर्टी के धंधे के ज़रिए शहर वाली मनचलियों को काम और दाम दोनों मुहैया कराया है तथापि अपनी चौधरानी के विधायक के नाम पर वे देशाटन का फ़ायदा भी ख़ूब उठा रहे हैं। हुक्मरान न सही, यहाँ या वहाँ डॉन की शान से वे ज़िंदग़ी का लुत्फ़ पुरज़ोर उठा रहे हैं। 

यूँ भी, जो नेता, जनता की बेरुख़ी या वोटिंग बूथों पर अपने आतंकी चमचों की नाक़ामयाबी से फ़िलवक़्त सिंहासन पर आसीन नहीं हो पाए हैं, वे ठाकुर साहब की तरह मायूस नहीं हैं। चमचों ने ठाकुर साहब से लाख मिन्नतें की थीं कि वे अपने साथ-साथ ठकुराइन को भी चुनावी जंग में उतार दें तो वे उन पर मूसलाधार बरस पड़े कि वे घर की इज़्ज़त-आबरू को सरेबाज़ार नहीं करेंगे। वर्ना, ठकुराइन अपने जलवे दिखाकर चुनावी संग्राम की बाज़ी तो जीती ही होती। ऐसे में, सत्ता से दूर रहकर ठाकुर सा’ब को जो मलाल आज हो रहा है, वह उन्हें कभी नहीं होता। अब जब उनके चमचे उन्हें सबक़ देते हैं कि उन्हें अपनी लुगाई को पूरा तवज्जोह देना चाहिए था तो वे आँखों पर रुमाल रखकर गंगा-जमुना हो बैठते हैं। अब पछताए होत क्या . . . 

इस प्रकार, सत्तासुख की परोक्ष चाह ने ऐसी लुगाइयों का दर्ज़ बढ़ाया ही है, साथ में राजनेता पतियों को मक्खीमार बेकारी से भी बाल-बाल बचाया है। आम पतियों को भी यह नुस्ख़ा अपनाना चाहिए और बीवियों को एड़ी-चोटी की मशक़्क़त से सत्तापद दिलाकर अपनी क़िस्मत में राजयोग सुनिश्चित करना चाहिए। पेटीकोट की ओट में पत्नी से राजसुख भोगने का इससे बढ़िया मौक़ा कहाँ मिलेगा? 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा

कार्यक्रम रिपोर्ट

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

साहित्यिक आलेख

कहानी

लघुकथा

ललित निबन्ध

किशोर साहित्य कहानी

कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं