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विज्ञान में सपनों का सच

यह पहला मौक़ा था जब कक्कू, चन्ना के विंग-बॉक्स में उड़ान भरते हुए बादलों की छुअन से सिहर रहा था। बादलों के बहुत नीचे चहचहाते चिड़ियों के झुंड को देख, ख़ुश हो रहा था। उसका जी हो रहा था कि वह विंग-बॉक्स से निकलकर, उनके साथ उड़ते हुए किसी सुदूर हरित प्रदेश में चला जाए और कुछ समय के लिए शहर के चिल्ल-पों से दूर जाकर, इस नीरस माहौल को भूल जाए। 

तभी चन्ना ने अपनी सीट के नीचे से एक कपड़ा निकाला और उसे कक्कू को देते हुए कहा, “यह लो, बैलून शर्ट। इसे पहनकर, तुम आसमान में बख़ूबी उड़ सकते हो। चाहो तो इन पक्षियों के साथ भी आसमान की सैर कर सकते हो।”

कक्कू ने चकित होकर सोचा कि आख़िर, चन्ना को उसके मन की बात कैसे पता चल गई? उसे पता था कि चन्ना के पापा वैज्ञानिक हैं। उन्होंने कई चौंकाने वाले आविष्कार किए हैं। ख़ुद चन्ना उनके सहायक के रूप में कार्य करता है। स्कूल से लौटने के बाद वह सीधे अपने पापा की प्रयोगशाला में चला जाता है और देर तक उनके साथ काम करता है। 

कक्कू ने वह कपड़ा पहन लिया। जब वह डरा-डरा-सा विंग-बॉक्स का दरवाज़ा खोल रहा था तो चन्ना ने उसे आसमान में रफ़्तार से उड़ने, दाएँ-बाएँ मुड़ने, कलाबाज़ियाँ मारने के गुर बताए। हिम्मत कर कक्कू ने दरवाज़े से बाहर छलाँग लगा ली। 

कक्कू को बड़ा अचरज़ हो रहा था कि उसके कोई प्रयास किए बिना ही वह जिधर चाह रहा है, उधर उड़ रहा है। उसने देखा कि जिस कपड़े को उसने पहन रखा है, वह गुब्बारे की तरह फूला हुआ है और उसका सारा शरीर उसके भीतर है जबकि उसके हाथ और सिर बाहर निकले हुए हैं जिन्हें घुमाकर वह दिशा बदल सकता है। 

आसमान में उड़ते हुए वह कक्कू फूला नहीं समा रहा था। वह किसी भी दिशा में मनचाही उड़ान भर रहा है। तभी उसे पोशाक के अंदर बिल्कुल कान के पास पहले से फ़िट माइक्रोफोन से, चन्ना की आवाज़ साफ़ सुनाई दी, “कक्कू, तुम्हारे पीछे चीलों का एक झुंड आ रहा है। वे तुम्हें नोच डालेंगी। मैं अपना विंग-बॉक्स तुम्हारे पास ला रहा हूँ। तुम वापस इसमें आ जाओ।”

जब कक्कू वापस आ गया तो चन्ना ने उससे कहा, “अब तुम यहाँ बैठो, मैं बाहर जा रहा हूँ।”

कक्कू बड़े असमंजस में था कि वह चन्ना की ग़ैर-हाज़िरी में विंग-बॉक्स को कैसे उड़ाएगा? लेकिन चन्ना ने उसे जाते-जाते उत्साहित किया, “घबराओ मत। यह रिमोट कंट्रोल है ना, मेरे पास। मैं इसी से यान कंट्रोल करूँगा।”

चन्ना ने वह कपड़ा पहन, आसमान में ऐसे छलाँग लगाई, जैसेकि वह कोई मामूली काम करने जा रहा हो। 

कक्कू का तो मुँह खुला का खुला रह गया। उसने सोचा भी नहीं था कि रिमोट-कंट्रोल से किसी यान को उड़ाया भी जा सकता है। उसे चन्ना की उपलब्धियों पर बड़ा ग़ुमान हो रहा था। सोच रहा था कि बड़ा होकर चन्ना बेशक! अपने पापा की तरह बड़ा वैज्ञानिक बनेगा। 

उसने विंग-बॉक्स की खिड़की से देखा कि चन्ना बिजली की गति से उड़ते हुए, एक गिद्ध का पीछा कर रहा है। उसने गिद्ध को झटपट पकड़ते हुए, उसकी गरदन के नीचे कोई छोटा-सा यंत्र चिपकाकर उसे रबर के छल्लों से फ़िक्स कर दिया। कुछ पल बाद वह वापस विंग-बॉक्स में आ गया और बोला, “मैंने उस गिद्ध के शरीर में एक चिप फ़िट कर दिया है। अब देखना, उसकी सारी बातें हम सुन सकते हैं।”

चन्ना ने लैपटॉप खोलकर चालू किया। उसकी उँगलियाँ बिजली की तरह की-बोर्ड पर चल रही थीं। कुछ सेकेंड में उस गिद्ध की बड़बड़ाहट कंप्यूटर पर लगे स्पीकर में सुनाई देने लगी। चन्ना ने कहा, “अब देखो, मैं गिद्ध की बातों को हिंदी में सुना रहा हूँ।”

उसने तत्काल गिद्ध की भाषा का हिंदी में अनुवाद करने वाला सॉफ़्टवेयर जोड़ दिया। गिद्ध की बातें हिंदी में सुनकर कक्कू हैरान हो गया। वह बेचारा पंछी अपनी गरदन को कसने वाले रबर के छल्लों से तंग आकर बड़बड़ा रहा था, “अरे-रे-रे! मेरी तो साँस ही घुटी जा रही है। हाय, मैं मरा। कोई तो बचाओ . . . ”

चन्ना को ख़ुद पर बेहद कोफ़्त हुई, “ओफ़्फ़ोफ़! बेचारे को फ़िज़ूल ही मैंने इस मुसीबत में क्यों डाल दिया?” 

वह फ़ौरन आसमान में छलाँग लगाकर गिद्ध के पास जा धमका। उसने उसकी गरदन से रबर के छल्ले खोलकर चिप को निकाला। जब वह वापस विंग-बॉक्स में लौटा तो कक्कू बरबस ही बोल उठा, “तुम दिल के बहुत बड़े हो।”

चन्ना ने मुस्कुराते हुए यान की रफ़्तार बढ़ाई। कक्कू सहमा-सहमा सा देख रहा था कि बादलों की भीड़ एकदम पीछे रह गई है। चन्ना ने कहा, “अब मैं तुम्हें एक ऐसे स्थान पर ले जा रहा हूँ जहाँ पहुँचकर तुम्हें सब कुछ स्वर्गलोक जैसा लगेगा।”

कुछ मिनटों बाद, विंग-बॉक्स पहाड़ की चोटियों के ऊपर से उड़ता हुआ, झरनों और नदियों को पार करता हुआ, उड़ता रहा। कक्कू तो जैसे दिन में ही सपना देख रहा था। उसने देखा कि उसका विंग-बॉक्स एक हरे-भरे मैदान में बहुत तेज़ी से उतर रहा है। चन्ना ने मुस्कराकर कहा, “आज मैं तुम्हें सचमुच परीलोक में ले जाऊँगा। मैं दिखाऊँगा कि पेड़ा-पौधों से बातें करना कोई कहानी-क़िस्सा नहीं है . . .”

विंग-बॉक्स से दिखाई देने वाला वह हरा-भरा मैदान अपने-आप में एक हरित प्रदेश था। नीचे उतरने के बाद, कक्कू ने वहाँ घूम-फिर कर देखा कि ख़रगोश, चूहे-बिल्लियाँ, कुत्ते, मोर आदि बड़े सलीक़े से काम कर रहे हैं। तितलियाँ फूलों को खिलने में मदद कर रही हैं ताकि मधु-मक्खियों को फूलों से शहद इकट्ठा करने में कोई दिक़्क़त न हो। चन्ना ने बताया, “यह सारा कमाल मेरे पापा ने किया है। इस हरित प्रदेश के निर्माण के लिए उन्होंने दिन-रात एक किया है। वह जितनी आसानी से हमें पढ़ाते हैं, उतनी ही सहजता से पशु-पक्षियों को को भी शिक्षित करते हैं। उनका कहना है कि हमारी दुनिया को सभ्य और सुंदर बनाने में हम मनुष्यों से ज़्यादा पशु-पक्षियों का योगदान है। पापा का दावा है कि एक दिन सारी दुनिया को ऐसा फ़ॉर्मूला दे दिया जाएगा जिसका प्रयोग करके रेगिस्तानों में भी फ़सलें लहलहाई जा सकती हैं। पशु-पक्षियों से खेती-बाड़ी कराई जा सकती है। आसमान में तंबू तानकर अंतरिक्ष में पिकनिक मनाया जा सकता है। आँधी-तूफ़ान चलाकर दुश्मनों के दाँत खट्टे किए जा सकते हैं। बादलों को आदेश देकर मनचाहे प्रदेशों में बारिश कराई जा सकती है।”

चन्ना ने आगे बताया, “यह विंग-बॉक्स पापा ने मुझे पिछले जन्म-दिन पर उपहार में दिया था। यह बैलून शर्ट तब भेंट की थी जब मैंने पिछली कक्षा में शत-प्रतिशत अंक पाए थे और यह लैपटॉप कंप्यूटर, लैब में मेरे कामों से ख़ुश होकर दिया था।”

उसके बाद दोनों ने मिलकर भोजन किया। प्रशिक्षित बंदरों ने जो ताज़े फल तोड़कर उन्हें दिए, उन्हें छककर खाया। मधु-छत्तों के नीचे जो नारियल एक कटोरे शहद से भर गए थे, उन्हें अघा-अघाकर पिया। 

भोजन के बाद चन्ना अपने दोस्त को उस प्रयोगशाला में ले गया, जिसे उसके पापा ने उस हरित प्रदेश में स्थापित किया था। उसने मशीनों के माध्यम से पेड़-पौधों से कक्कू की बातचीत कराई। उड़ते तोते के गले में माइक्रो कैमरा लगाकर कंप्यूटर के मॉनीटर पर दूर-दराज़ के मनोहारी दृश्य दिखाए। सबसे अजीब बात तब हुई जबकि ख़रगोशों की माँग पर उसने एक ख़रगोश निदेशक द्वारा तैयार की गई एक फ़िल्म दिखाई। चूहे, ख़रगोश, मेंढक, और मेमने सभी ने उसकी फ़िल्म देखी। फिर, झरनों से गिरते पानी की ध्वनि को हारमोनियम, शहनाई, बाँसुरी और सितार की ध्वनियों में बदलकर सुनाया। कक्कू के तो होश उड़ गए। वह बार-बार सोच रहा था कि कहीं वह कोई सपना तो नहीं देख रहा है। 

चन्ना ने मुस्कराकर कक्कू को देखा। बोला, “हाँ, तुम सोच रहे होगे कि मैं तुम्हें सपना दिखा रहा हूँ। लेकिन, विज्ञान जो संसार रचता है, वह देखने में भले ही सपने जैसा हो; पर होता है, सच . . . ”

उसके बाद दोनों विंग-बॉक्स में उड़ान भरते हुए वापस घर आ गए। 

शाम हो चुकी थी। जब कक्कू, चन्ना को उसके घर छोड़ते हुए अपने घर पहुँचा तो वह बहुत थका-माँदा था। रात का खाना जल्दी खाकर वह सोने चला गया। बोला, “मम्मी, कल सुबह जब मैं देर तक सोता रहूँ तो मुझे जगाना मत; नहीं तो मेरा सपना टूट जाएगा।”

मम्मी को उसकी बात अजीब-सी लगी। पर, उन्होंने कुछ नहीं कहा। 

दूसरे दिन, जब सुबह आठ बजे चन्ना कक्कू के घर पहुँचा तो वह हरित प्रदेश का ही सपना देख रहा था। चन्ना ने झकझोरकर उसे जगाया। मम्मी ने कहा, “देखो कक्कू, तुमने जो सपने देखे हैं, उनके बारे में मुझे बताना होगा, नहीं तो मैं तुम्हें गरमा-गरम दूध नहीं पिलाऊँगी।”

जब वह मुस्कुराती हुई घर का काम निपटाने चली गई तो चन्ना ने कक्कू के कान में फुसफुसाकर कहा, “कल वाली बात अभी किसी को मत बताना। नहीं तो, पापा को अच्छा नहीं लगेगा। उनका कहना है कि जब वह एक दिन अपने सारे अविष्कार भारत सरकार के सिपुर्द कर देंगे तब सारी दुनिया के लोगों को इससे फ़ायदा पहुँचेगा।”

आधे घंटे में कक्कू नहा-धो, खा-पीकर, चन्ना के घर चला गया। उसकी मम्मी बहुत ख़ुश हो रही थी कि चलो, उनके बेटे की गरमी की छुट्टियाँ अच्छी गुज़र रही हैं।

कुछ समय बाद, दोनों विंग-बॉक्स में उड़ान भर रहे थे। 

थोड़ी देर में उनका विंग-बॉक्स सपने दिखाने के लिए हरित प्रदेश में उतर रहा था। कक्कू विंग-बॉक्स से उतरते हुए लड़खड़ाकर गिर गया। वह दर्द से कराह उठा, “बहुत दर्द हो रहा है। यार, इतना दर्द तो सपने में नहीं होता। वाक़ई, न तो मैं कल कोई सपना देख रहा था न ही आज। यह जो सपनों जैसा संसार दिख रहा है, उसे विज्ञान ने ही साकार किया है।”

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टिप्पणियाँ

पाण्डेय सरिता 2022/08/27 10:38 AM

शानदार...

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