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सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में हिंदी और हिंदीतर भाषाओं के उन्नयन हेतु एक समन्वित अभियान: विशेष संदर्भ-अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन-2025

 

आज की तारीख़ में हिंदी भाषा और साहित्य का दिल बन चुकी दिल्ली, भाषा और संस्कृति के पुनरुत्थान का बिगुलनाद करने में महत्त्वपूर्ण अगवाई कर रही है। यह अगवाई इस उपमहाद्वीप के प्रदेशों तक ही सीमित नहीं है अपितु यह भौगोलिक सीमाओं को लाँघते हुए विश्व के प्रायः सभी देशों में अपना परचम लहराने का दमख़म दिखा रही है। देश की कंटिकाकीर्ण पगडंडियों से चलते हुए, आर्यावर्ती संस्कृति की उद्घोषिका, यह हिंदी—अन्तरराष्ट्रीय राजमार्गों पर दौड़ने के लिए अब आतुर दिखाई दे रही है। ऐसा सम्भव हो पाया है—भारत और भारत से बाहर की चुनिंदा संस्थाओं तथा कुछ अदम्य ऊर्जावान शख़्सियतों द्वारा, जिनके दृढ़ संकल्प ने हिंदी के विकास-मार्ग को प्रशस्त करने का बीड़ा उठाया है। 

‘अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद’, ‘वैश्विक हिंदी परिवार’ और ‘वातायन यूके’ ऐसे चंद नाम हैं जो हिंदी भाषा और साहित्य के समुद्रपारीय प्रचार-प्रसार में विगत कुछ दशकों से सतत दत्तचित्त रहे हैं। इन संस्थाओं द्वारा समय-समय पर विश्व के कोने-कोने हिंदी का दीप प्रज्ज्वलित करने का श्लाघ्य काम किया गया है। वैश्विक हिंदी परिवार ने तो दुनियाभर के अधिकाधिक देशों को एक सूत्र में बाँधकर उन्हें एक ही मंच पर ला-खड़ा किया है। विस्मयकारी बात तो यह है कि विदेशी भाषाविदों, साहित्यकारों और विद्वानों ने ख़ुद पूरी ज़िम्मेदारी से हिंदी को भौगोलिक बाधाओं को धता बताते हुए इसे एक ऐसा आयाम देने के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज़ की है जिसके सतत विस्तारीकरण में, ऐसा विश्वास है, अब कोई अड़चन आने वाली नहीं है। 

हिंदी को वैश्विक भाषा बनाने के प्रयास में कई घटकों के जुड़ने के साथ-साथ एक महत्त्वपूर्ण घटक है—ब्यूरोक्रैट्स का स्वयंसेवी आधार पर इस कार्य में कंधे से कंधा मिलाकर काम करने का संकल्पित प्रयास। उल्लेखनीय है कि जहाँ भारत सरकार का अधिकारी-तंत्र दशकों तक हिंदी के प्रति एक उपेक्षात्मक रवैया अपनाए हुए था, अब वह हिंदी के सार्वत्रिक विस्तार के बारे में न केवल सोच रहा है, अपितु इस दिशा में अत्यंत सक्रिय भी है। भारत सरकार के विभिन्न विभागों में कार्यरत या सेवानिवृत्त अधिकारी बड़े मनोयोग से दिल्ली-स्थित प्रवासी भवन में एक निर्धारित दिवस को आवर्ती आधार पर बैठकें आयोजित करते हैं; एक बड़े फलक पर हिंदी के भविष्य पर चिंतन करते हैं; इसके विकास हेतु बहुकोणीय रणनीतियाँ तैयार करते हैं; अपने स्वयंसेवी सदस्यों से सुझाव मँगवाते हैं तथा उन्हें क्रियान्वित करने की दिशा में पहलक़दमी करते हैं। यह सब कुछ हिंदी परिवार के संबद्ध सदस्यों द्वारा बड़े नि:स्वार्थ भाव से, फ़ायदा-नुक़सान की कोई चिंता किए बग़ैर, निष्पादित हो रहा है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि ब्रिटेन, अमरीका, रूस, कैनेडा, जापान, यूक्रेन, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, मॉरीशस, नीदरलैंड, त्रिनिदाद आदि जैसे देशों के भाषाकर्मी, साहित्यकार और बुद्धिजीवी भी इन बैठकों में ऑनलाइन माध्यम से उपस्थित होते हैं। वे अपने सकारात्मक दृष्टिकोणों से वैश्विक हिंदी परिवार के लिए एजेंडा तैयार करते हैं, अपनी कार्यनीति निर्धारित करते हैं तथा हिंदी और इसकी सहोदरी भाषाओं के उन्नयन हेतु मार्ग प्रशस्त करते हैं। बेशक, प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विदेशी मूल के हिंदी प्रेमियों का इस अभियान में शामिल होना हम भारतीयों के लिए कितना उत्साहवर्धक है—इस बात को रेखांकित करते हुए प्रत्येक हिंदीप्रेमी का सीना चौड़ा हो जाता है। 

यह अभियान, हिंदी की विकास-यात्रा में अंज़ाम तक पहुँचने के लिए अब न थमते हुए, अनेक मील के पत्थर बनाएगा। अक्तूबर 2023 में लंदन में आयोजित भारोपीय हिंदी महोत्सव की अभूतपूर्व सफलता और लोकप्रियता ने हिंदी के चहेतों को आश्वस्त कर दिया था कि हिंदी की विकास-यात्रा में भारत के हिंदीप्रेमियों के साथ-साथ प्रवासी हिंदीकर्मियों का सहज योगदान सोने में सुहागा की तरह काम करेगा। बेशक, भारतेतर देशों में हिंदी के विस्तारीकरण में प्रवासी साहित्यकारों के योगदान को हिंदी भाषा और साहित्य के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। उक्त महोत्सव में यह बात भी प्रतिपादित हुई कि हिंदी का सार्वभौमीकरण तभी सम्भव हो पाएगा जबकि भारतीय संस्कृति के बीज भी साथ-साथ छितराए जाएँगे तथा इसकी फ़सल लहलहाई जाएगी। ऐसा वर्ष 2023 में आयोजित लंदन महोत्सव में देखने में आया था जबकि महोत्सव के सत्रों और इवेंटों में हिंदी भाषा और साहित्य के साथ-साथ भारतीय संस्कृति के नानाविध रूपों और विधाओं की छटाएँ मंचों पर रूपायित की गईं। वहाँ यह सच प्रतिपादित हुआ कि भाषा और संस्कृति अन्योन्याश्रित होती हैं। प्रदेश-विशेष की संस्कृति को वहाँ की भाषा के माध्यम से ही मुखर किया जा सकता है; अतएव हम जिस परदेस में अपनी भाषा को प्रचारित-प्रसारित करना चाहते हैं, उसकी संस्कृति भी वहाँ पहुंचानी होगी क्योंकि भाषा संस्कृति की ज़बान होती है। 

ऐसा सोचना सही है कि जब-जब हिंदी बाहर अपना लालित्य-प्रदर्शन करने तथा अपनी जड़ें जमाने-सींचने जाएगी, वह बार-बार स्वदेश लौटेगी, नवोन्मेषित होने के लिए—ठीक उसी तरह, जिस तरह कि कुएँ से पानी निकालकर, प्यासों तक पहुँचाकर, उन्हें ऊर्जस्व बनाने के लिए बाल्टी को बार-बार कुएँ में डाला जाता है और पानी निकाला जाता है। हिंदी भाषा के साथ भी वर्ष 2025 में कुछ ऐसा ही हुआ जबकि 10 से 12 जनवरी तक दिल्ली-स्थित इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र में अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन-2025 का आयोजन किया गया। हिंदी और अन्य सभी भारतीय भाषाओं को केंद्र में रखकर इस त्रि-दिवसीय सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा वैश्विक हिंदी परिवार का यह संयुक्त उपक्रम महत्त्वपूर्ण रहा है। हिंदी और हिंदीतर भारतीय भाषाओं को केंद्र में रखकर, भाषाई विकास के उच्चावचों को परस्पर मिलाने के लिए एक व्यापक कार्यसूची तैयार की गई जबकि विचार-विमर्श, वक्तव्यों और पारस्परिक संवादों के ज़रिए भाषाई सेतु तैयार करने के लिए संस्कृति, हिंदी शिक्षण, प्रौद्योगिकी और अनुवाद की भूमिका को बारंबार रेखांकित किया गया। 

इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के कोई 22 सत्रों में विदेशों से कम से कम 50 विशिष्ट प्रतिनिधियों ने प्रतिभागिता की जबकि भारत के विभिन्न हिंदीभाषी और हिंदीतर राज्यों से पधारे बुद्धिजीवियों और भाषाविदों ने भी गरमजोशी से सभी कार्यक्रमों को अपने सकारात्मक विचारों से गरिमा प्रदान की। प्रतिभागी युवाओं, शोधार्थियों और छात्र-छात्राओं में हिंदी और हिंदीतर भारतीय भाषाओं के प्रति जो उत्साह दृष्टिगोचर हुआ, वह सचमुच उल्लेखनीय है। वे हिंदी में सृजनात्मक लेखन के प्रति भी उत्साहित दिखे जो हिंदी के भविष्य के लिए एक शुभ संकेत इंगित करता है। 

विश्व हिंदी दिवस के दिन ही अर्थात्‌ 10 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय भाषा सम्मेलन आरंभ हुआ और इस समारोह का आयोजन नई दिल्ली-स्थित इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र में देश-विदेश के गणमान्य शख़्सियतों की गरिमामयी उपस्थिति में किया गया। हिंदी के चहेतों से भरे हुए सभागार में समारोह का श्रीगणेश पारंपरिक शैली में किया गया और दोपहर 2:30 बजे चर्चाओं तथा वक्तव्यों में वैश्विक हिंदी के परिदृश्य को सामने रखा गया। विचार-विमर्श का विषय था-‘वैश्विक हिंदी: चुनौतियाँ और संभावनाएँ’ जिसमें प्रतिभागी वक्ता अपने-अपने क्षेत्रों के विशेषज्ञ थे जिन्होंने अपने पूर्वापेक्षी अनुभवों तथा अर्जित ज्ञानकोश के ज़रिए श्रोता-दर्शकों के मानस को आलोकित किया। इसी क्रम में मध्याह्न 12 बजे से साहित्य अकादमी, रवींद्र भवन में प्रवासी साहित्यकारों की एक बैठक आयोजित की गई जिसका उद्देश्य था—प्रवासी साहित्यकारों संग संवाद स्थापित करना। इस संवाद-सम्मिलन संगोष्ठी में पद्मश्री तोमियो मिज़ोकामी, डॉ. वेद प्रकाश सिंह और सुश्री रमा शर्मा (जापान से); डॉ. पद्मेश गुप्त, सुश्री दिव्या माथुर, श्री तेजेंद्र शर्मा, डॉ. मीरा कौशिक, डॉ. जय वर्मा, सुश्री तितिक्षा शाह (सभी ब्रिटेन से); डॉ. धनंजय कुमार, श्रीमती अनिता कपूर, श्री अनूप भार्गव, डॉ. इंद्रजीत शर्मा, श्रीमती मीरा सिंह (सभी अमरीका से); डॉ. संध्या सिंह, श्री विनोद दुबे एवं सुश्री आराधना झा श्रीवास्तव (सिंगापुर से); डॉ. मनीष पाण्डेय (नीदरलैंड से); डॉ. मृदुल कीर्ति (ऑस्ट्रेलिया से); सुश्री सरिता बुद्धू, श्री चिंतामणि शर्मा तथा सुश्री शशि (मॉरीशस से); श्री अभिषेक त्रिपाठी (ऑयरलैंड से); सुश्री इंद्राणी राम प्रसाद (त्रिनिदाद से); श्री रामा तक्षक (हॉलैंड से); श्रीमती मोना कौशिक (बुल्गारिया से); सुश्री शिखा रस्तोगी (थाईलैंड से); डॉ. विवेकमणि त्रिपाठी (चीन से) आदि जैसे विशिष्टजन उपस्थित थे जिन्होंने मंच पर और प्रायः नेपथ्य में रहते हुए सम्मेलन के माहौल को गुंजायमान्‌ बनाए रखा। 

दिनांक 11 जनवरी को मध्याह्न-पूर्व, भूतपूर्व राष्ट्रपति महिमामहिम डॉ. रामनाथ कोविंद द्वारा इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के समवेत सभागार में विधिवत दीप-प्रज्वलित करते हुए सम्मेलन का उद्घाटन किया गया। तत्समय, भारत सरकार के पूर्व-शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, पद्मश्री डॉ. तोमियो मिज़ोकामी, ऑक्सफ़ोर्ड बिज़नेस कॉलेज के डॉ. पद्मेश गुप्त, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के महासचिव श्री श्याम परांडे, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य-सचिव श्री सच्चिदानंद जोशी और वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी भी उपस्थित रहे। पूर्व-महिमामहिम ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि भारतीय डायसपोरा ने विदेशों में भारत की छवि को मज़बूत किया है। उनके अभिभाषण का लब्बोलुबाब यह था कि भाषा और संस्कृति के माध्यम से ही देश की एकता को सुदृढ़ बनाया जा सकता है। ऑक्सफ़ोर्ड बिज़नेस स्कूल के प्रबंध-निदेशक डॉ. पद्मेश गुप्त ने कहा कि हिंदी, योग और अध्यात्म की भाषा है। तेलंगाना प्रदेश के सांसद श्री राजेंद्र ने बताया कि एक देश की भाषा और संस्कृति ही वहाँ के जीवन को प्रतिबिंबित करती है। इसी क्रम में, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य-सचिव श्री सच्चिदानद जोशी ने अपने वक्तव्य में भारतीय भाषाओं तथा बोलियों के विलुप्त होने के ख़तरे पर अपनी चिंता व्यक्त की। 

दिनांक 11 जनवरी को 9:30 बजे से आरंभ सभागार में ‘भारतीय भाषाओं की वैश्विक स्थिति और दिशाएँ’ जैसे ज्वलंत विषय पर लब्ध-प्रतिष्ठ वक्ताओं ने अपने-अपने सारगर्भित मंतव्य दिए। 11:30 बजे से आरंभ हुए सत्र में ‘सूचना प्रौद्योगिकी एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता भारतीय भाषाएँ’ विषय पर ऐसे रचनात्मक वक्तव्य दिए गए जिससे कि हिंदी समेत इसकी सहोदरी भाषाएँ आपस में समन्वय स्थापित करते हुए प्रौद्योगिकीय आधार पर विकास के नए-नए प्रतिमान स्थापित कर सकें। 

11 जनवरी को ही छह समानांतर सत्र भी आयोजित किए गए। 2:00 बजे से शुरू हुए समवेत सभागार में ‘उच्च शिक्षा में भारतीय भाषाएँ: नई दिशाएँ और चुनौतियाँ’, उमंग सभागार में ‘विदेशों में हिंदी शिक्षण: स्थिति और संभावनाएँ तथा चुनौतियाँ’ और प्रदर्शनी स्थल सभागार (दृश्य 2) में ‘रचना दृष्टि’ जैसे सत्र आयोजित किए गए। समानांतर सत्रों के आयोजन-क्रम में 11 जनवरी को 4:00 बजे समवेत सभागार में ‘भारतीय भाषा: विशेष संदर्भ राजभाषा एवं देवनागरी लिपि’; उमंग सभागार में ‘रचनाकारों की कृतियों पर नाट्यपाठ की प्रस्तुतियाँ की गईं; तथा प्रदर्शनी स्थल सभागार (दृश्यम 2) में ‘भारत की ज्ञान परंपरा’ विषयों पर गहन और सुरुचिपूर्ण चर्चा हुई। 11 जनवरी को ही सायं 6:30 बजे मंडी हाउस स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अभिनय थिएटर पर में ‘धर्मवीर भारती की कृति ‘अंधा युग’ का मंचन किया गया। सायं 4:00 बजे से समवेत हुए उमंग सभागार के मंच पर विभिन्न रचनाकारों की साहित्यिक कृतियों पर नाट्य पाठ और नाट्य प्रस्तुतियाँ की गईं। इन प्रस्तुतियों में नाट्य पाठ किया–अभिनेता श्री संकल्प जोशी, सुश्री आराधना झा श्रीवास्तव तथा सुश्री तितिक्षा शाह ने। 
दिनांक 12 जनवरी को मध्याह्न-पूर्व प्रदर्शनी स्थल में ‘मेरा शब्द संसार’ कार्यक्रम के अंतर्गत वरिष्ठ साहित्यकारों नामत: सुश्री नासिरा शर्मा, प्रो. जितेंद्र श्रीवास्तव और सुश्री दिव्या माथुर की उपस्थिति में उनके साहित्यिक अवदान और उपलब्धियों पर चर्चा हुई जिसकी सूत्रधार थीं—गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय की शिक्षक, डॉ. रेणु यादव। आलोचक-समीक्षक जितेंद्र श्रीवास्तव का वक्तव्य अत्यंत दिलचस्प और विश्लेषणात्मक रहा। 

उस दिन, तीन समानांतर आयोजनों में नौ सत्र आयोजित किए गए। समवेत सभागार में 9:30 बजे से आरंभ हुए सत्र में ‘सूचना प्रौद्योगिकी, कृत्रिम मेधा और भारतीय भाषाएँ’, ‘अनुवाद क्षेत्र में संभावनाएँ’ एवं ‘पत्रकारिता: नई दिशाएँ’ जैसे प्रासंगिक विषयों पर विद्वत् जनों द्वारा ज्ञानवर्धक वक्तव्य दिए गए। ये सत्र सभी उपस्थित छात्र-छात्राओं और शोधकर्ताओं के लिए अत्यंत उपादेय साबित हुए। प्रवासी लेखकों के संदर्भ में डायसपोरा के लिखित साहित्य पर शोध-संधान के लिए एक सत्र उमंग सभागार में भी चलाया गया। इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया कि डायसपोरा साहित्य पर गुणात्मक शोध में मात्रात्मक वृद्धि की जानी चाहिए और शैक्षणिक-शोध संस्थानों को इस दिशा में पहल करनी चाहिए। एक समानान्तर सत्र ‘भाषा और साहित्य पर शोध’ के लिए भी प्रदर्शनी स्थल सभागार (दृश्यम 2) में आयोजित किया गया। उसी दिन के समानांतर आयोजनों में समवेत सभागार में 11:30 बजे से आरंभ हुए ‘भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता: अस्मिता का प्रश्न’; उमंग सभागार में ‘भारतीय भाषाओं में एकात्मकता’; तथा प्रदर्शनी स्थल सभागार (दृश्यम 2) में ‘शब्द संसार’ विषयों पर संचालित सत्र उल्लेखनीय रहे। 

दिनांक 12 जनवरी के तीसरे चरण के आयोजनों का आरंभ 2:00 बजे से हुआ। इसमें समवेत सभागार, उमंग सभागार और प्रदर्शनी स्थल सभागार (दृश्यम 2) में क्रमश: तीन सत्र, नामत: ‘भारतीय भाषाओं में अंतर्संबंध और अनुवाद’, विदेशों में भारत की भाषा और संस्कृति: विशेष संदर्भ गिरमिटिया देश’ तथा ‘रचना पाठ’ आयोजित किए गए। इसके अतिरिक्त, सायं 4:00 बजे से आरंभ होकर सम्मेलन का समापन समारोह समवेत सभागार में ही संपन्न हुआ। 

उल्लेखनीय है कि इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में सत्रों के अंतर्गत आयोजित कार्यक्रमों में दिलचस्प सघनता रही। कविता पाठ, पुस्तक लोकर्पण और चित्र प्रदर्शनी भी सम्मेलन के महत्त्वपूर्ण आकर्षण रहे। प्रतिभागी, शोधकर्ता, छात्र-शोधार्थी, दर्शक-श्रोता तथा अन्य प्रबुद्धजन एक सभागार से निकलकर दूसरे और तीसरे सत्रों के लिए अलग-अलग सभागारों में उपस्थित होने के लिए उत्साहित नज़र आए। मीडियाजनों की, कार्यक्रमों के सूक्ष्मतम ब्योरों को कवर करने की व्यस्तता देखते बनती थी। 

सम्मेलन के अन्य आकर्षणों में लगाई गई पुस्तक प्रदर्शनी के साथ-साथ, प्रवासियों द्वारा बनाई गई जलरंगों में पेंटिंग्स सराहनीय रहीं। अधिकतर पेंटिंग्स ग्रामीण परिवेश के दृश्यों को सजीवता से वर्णित करती थीं। इन पेंटिंग्स से प्रवासियों की भारतीय संस्कृति और जीवन-शैली के प्रति अटूट लगाव परिलक्षित होता है। पुस्तक प्रदर्शनी में भारतीय लेखकों की पुस्तकों के अतिरिक्त, हर स्तर के प्रवासी रचनाकारों तथा लेखकों द्वारा विरचित पुस्तकों के प्रति आगंतुकों का आकर्षण विशेष उल्लेखनीय है। सम्मेलन में मुद्रित पत्र-पत्रिकाओं के लोकार्पण भी किए गए। सिंगापुर की प्रवासी कवयित्री सुश्री आराधना झा श्रीवास्तव के प्रथम कविता-संग्रह और हॉलैंड से प्रकाशित पत्रिका ‘साहित्य का विश्व रंग’ के लोकार्पण किए गए। देर शाम, जिस समापन सत्र का आग़ाज़ समवेत सभागार में हुआ, उसमें सभी देश-विदेश के प्रतिभागियों, वक्ताओं तथा प्रबुद्धजनों को सम्मेलन के स्मृति-चिह्न और प्रमाण-पत्र वितरित किए गए। 

इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र में आयोजित अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन-2025 अपनी विशिष्टताओं के लिए रेखांकित किया जाएगा। इसका मुख्य बल हिंदी भाषा तथा इसकी सहोदरी भाषाओं के मध्य तालमेल स्थापित करना था। हिंदीतर भाषाओं से हिंदी में अनुवाद, हिंदी और हिंदीतर भाषाओं के मध्य परस्पर सेतु-बंधन, लिप्यंतरण की समस्याओं, कृत्रिम मेधा के अनुप्रयोग, प्रौद्योगिकियों का अभीष्टतम प्रयोग, विशेषतया भारत के हिंदीतर राज्यों और विदेशी जन-समुदायों के लिए व्यावहारिक हिंदी प्रशिक्षण, हिंदी पत्रकारिता के भविष्य तथा हिंदीतर पत्रकारिता की समस्याओं, युवाओं के भाषा संबंधी रुझान को प्रोत्साहन जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, इस बात पर विशेष बल दिया गया कि भाषा संबंधी अधिकतर विषयों को इस सम्मेलन में गंभीरता से आवेष्टित किए जाए और कहीं भी कोई बड़ी रिक्तता न रह जाए। चर्चाओं, संवादों, बौद्धिक वक्तव्यों तथा सभी तरह के विचार-विनिमय में एक ऐसे सांस्कृतिक परिवेश के सृजन की अकुलाहट दृष्टिगोचर हुई जिसमें भाषाओं को पालित-पोषित करना सहज-सरल हो सके। निष्कर्ष यह निकलता है कि हिंदी भाषा, अनुसूचित भाषाओं, उपभाषाओं और बोलियों के चतुर्मुखी उन्नयन हेतु भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार आवश्यक है अन्यथा उनका वैश्विक संदर्भ में और हिंदीतर क्षेत्रों में समुचित रोपण और पल्लवन सम्भव नहीं हो सकेगा। दक्षिण की हिंदीतर भाषाओं, लोकभाषाओं और बोलियों की लुप्तप्राय स्थितियों पर जो चिंताएँ व्यक्त की गईं, उनसे एक बात तो स्पष्ट होती है कि एक बड़ी संख्या में भाषा-प्रेमी सक्रिय होंगे और यह सम्मेलन उनके लिए एक संकल्पनिष्ठ क़दम होगा। इसे एक छोटा डग समझा जाएगा और भविष्य में लंबी दौड़ के लिए वचनबद्धता से मुँह नहीं मोड़ा जाएगा। 

(कायिक रिपोर्ट) 

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