कविता मेहरा गई है
काव्य साहित्य | कविता डॉ. मनोज मोक्षेंद्र15 Jul 2022 (अंक: 209, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
आँसुओं से
कविता मेहरा गई है
रुलाहट से
कविता बहरा गई है
दुःख से
कविता पथरा गई है
सच से
कविता गूँगी हो गई है
अब क्या करें
जब कविता
किसी लायक़ ही नहीं रही?
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
शोध निबन्ध
पुस्तक समीक्षा
कार्यक्रम रिपोर्ट
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
साहित्यिक आलेख
कहानी
लघुकथा
ललित निबन्ध
किशोर साहित्य कहानी
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
डॉ. मनोज मोक्षेंद्र 2022/07/21 08:13 AM
आपने मेरी कविताओं को जो सम्मान दिया है, उसके लिए हृदय से आभार!