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सूर्य का रहस्य

इस लेख को लिखने का मेरा उद्देश्य पाठकों को भ्रम के जाल में बाँधना नहीं है बल्कि उनके सम्मुख अपने नये विचार प्रस्तुत करना है। जब मैं आठवीं कक्षा में पढ़ता था तब हमें पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में रटवाया जाता था कि सूर्य बहुत बड़ा आग का गोला है। लाखों करोड़ों वर्ष पूर्व सूर्य का एक बड़ा सा टुकड़ा टूटकर अलग हो गया। करोड़ों वर्षों बाद यह ठंडा हुआ, इस पर जल की उत्पत्ति हुई और जीवन सम्भव हुआ। यही टुकड़ा हमारी पृथ्वी है। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। आज भी हम उसी लीक पर चल रहे हैं। परन्तु यहाँ सोचने वाली बात यह है कि यदि सूर्य आग का गोला होता तो जलने से उसका कुछ भाग राख भी बनता और इतने बड़े पिंड से राख भी बहुत बनती। फिर तो अंतरिक्ष में इतनी राख भर जाती कि हम सूर्य, चाँद और तारों को देख ही नहीं पाते। हम जानते हैं कोई भी वस्तु के जलने पर राख अवश्य बनती है जैसे उल्का पिंड जलकर नष्ट ही हो जाते हैं। परन्तु जब से ब्रह्माण्ड की रचना हुई है सूर्य अडिग खड़ा है और रहेगा। यदि यह आग का गोला है तो इतने लम्बे तक समय जलने से छोटा हो जाना चाहिए था। जब पृथ्वी ठंडी हो सकती है, उस पर पानी पैदा हो सकता है और उस पर जीव उत्पन्न हो सकता है तो फिर आज तक सूर्य की ऊष्मा कम क्यों नहीं हुई। जिस स्थति में उसे हमारे पूर्वज देखते आ रहे हैं आज भी वैसा ही दिखता है। 

लेकिन असल बात तो यह है कि सूर्य आग का गोला नहीं हैं। अब पाठकों के मन में प्रश्न उठ रहा होगा कि यदि वह आग का गोला नहीं है तो चमकता कैसे है? उसकी किरणों से ऊष्मा क्यों मिलती है? आप हमें क्यों भ्रमित कर रहे हैं? आदि। 

लेकिन सच बात तो यह है सूर्य के चमकने और ऊष्मा के पीछे किसी अन्य शक्ति का योगदान है। और वह शक्ति है उसका वातावरण। सूर्य के चारों ओर के वातावरण में कुछ अद्भुत गैसें पाई जाती हैं जिनकी क्रियाओं से तीव्र प्रकाश पैदा होता है। ये गैसें प्रकाश पैदा करने में सहायक होती हैं इसलिए इन्हें  ’प्रकाश मित्र गैसें’ कह सकते हैं। ये गैसें सूर्य के चारों ओर हज़ारों किमी के दायरे में पाई जाती हैं। जिस क्षेत्र में ये गैसें पाई जाती हैं वह क्षेत्र हमेशा प्रकाशित रहता है। अत: इस क्षेत्र को हम ’प्रकाश गृह’ कह सकते हैं। प्रकाश गृह से तीव्र प्रकाश निरंतर सूर्य पर पड़ता है। सूर्य सीसा युक्त चट्टानों से निर्मित होने के कारण तेज चमकता है और महा उत्तल दर्पण का काम करते हुए प्रकाश को सभी दिशाओं में फेंकता रहता है। 

सूर्य की ओर से आने वाली किरणें बहुत लम्बी दूरी तय कर मात्र आठ मिनट में पृथ्वी पर पहुँच जाती हैं। तीव्र वेग के कारण उनमें घर्षण होता है। जिससे इनकी प्रकृति ऊष्मीय हो जाती है और हमारी पृथ्वी गर्म हो जाती है। अब प्रश्न यह उठता है कि उगता और छिपता सूर्य लाल दिखता है लेकिन दोपहर में नहीं। ऐसा क्यों? 

सूर्य एक ठोस पिण्ड है जो अपनी धुरी पर पूरब से पश्चिम की ओर घुर्णन करता है। इसका प्रमाण जून माह में दोपहर को मरुस्थलीय क्षेत्रों में स्पष्ट देखा जा सकता है। उस समय मरुस्थल में सूर्य की किरणें लहरों के रूप में पूरब से पश्चिम की ओर चलती हूई स्पष्ट दिखाई देती है जो सूर्य की घुर्णन गति का ही प्रभाव है। घुर्णन से किरणें लहरदार हो जाती है। सूर्य अपनी धुरी पर एक चक्र पूरा करने में लगभग एक वर्ष का समय लेता है। घुर्णन बल के कारण प्रकाश मित्र गैसें सूर्य की मध्यांश रेखा (सूर्य के ध्रुव उत्तरी से दक्षिणी ध्रुव के बीच, पूरब से पश्चिम खींची काल्पनिक रेखा) से ध्रुवों की ओर गतिशील रहती हैं। अत: ध्रुवीय क्षेत्रों में ये गैसें संघन तथा शेष भाग पर विरल रूप में पाई जाती है। ये गैसें 30-35 प्रतिशत क्षेत्र (ध्रुवीय क्षेत्र) पर संघन एवं 65-70 प्रतिशत क्षेत्र (अध्रुवीय क्षेत्र) पर विरल मिलती हैं। उत्तरांश (मध्यांश से 66.5॰ उत्तर) एवं दक्षिणांश (मध्यांश से 66.5॰ दक्षिण) के मध्य का क्षेत्र अध्रुवीय क्षेत्र एवं दोनों गोलार्द्धो में 66.5॰ से 90॰ तक का क्षेत्र ध्रुवीय क्षेत्र है। 

अत: जहाँ प्रकाश मित्र गैसों का दबाव अधिक होगा वहाँ प्रकाश तीव्र होगा एवं जहाँ इनका दबाव कम होगा वहाँ प्रकाश भी मंद होगा। इसलिए ध्रुवीय क्षेत्रों पर तेज़ प्रकाश पड़ने के कारण सूर्य के ध्रुवीय क्षेत्र प्रचंड चमकते हैं तथा अध्रुवीय क्षेत्र (उत्तरांश व दक्षिणांश) पर प्रकाश मंद पड़ने के कारण लाल दिखाई देता है। जब सूर्योदय या सूर्यास्त होता है तब हमें सूर्य का अध्रुवीय भाग दिखाई देता है। अत: सूर्य लाल दिखाई देता है। लेकिन जैसे जैसे सूर्य ऊपर की ओर उठता है वैसे वैसे सूर्य का लालिमायुक्त भाग ऊपर चला चला जाता है एवं उसका तीव्र प्रकाशयुक्त ध्रुवीय भाग पृथ्वी के सामने आने लगता है जिससे पृथ्वी पर ऊष्मा एवं प्रकाश बढ़ने लगता है। दोपहर में सूर्य का ध्रुवीय भाग ठीक पृथ्वी के सामने होता है अत: सर्वाधिक प्रकाश व ऊष्मा पृथ्वी तक पहुँचती है। दोपहर के बाद सूर्य का अध्रुवीय भाग धीरे धीरे पृथ्वी के सामने आने लगता है अत: धीरे धीरे ऊष्मा व प्रकाश कम होने लगता है तथा सूर्य का रंग लाल दिखाई देता है। 

पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में गरमी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में सरदी पड़ने का यही कारण कि उत्तरी गोलार्द्ध पर सूर्य का ध्रुवीय भाग एवं दक्षिणी गोलार्द्ध पर अध्रुवीय भाग पृथ्वी पर सीधा चमकता है। इसी प्रकार उत्तरी गोलार्द्ध में सरदी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में गरमी पड़ने का कारण है उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य का अध्रुवीय भाग तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उसका ध्रुवीय भाग सीधा चमकता है अब प्रश्न उठता है—क्या सूर्य के घुर्णन का पृथ्वी पर कोई प्रभाव पड़ता है? 

सूर्य के घुर्णन का प्रभाव पृथ्वी ही नहीं बल्कि सभी ग्रहों पर पड़ता है। सभी ग्रहों की घुर्णन और परिक्रमण गतियों का संचालन सूर्य ही करता है। कोई ग्रह कितने समय में अपने अक्ष पर घुर्णन करेगा और कितने समय में सूर्य की परिक्रमा करेगा? यह उसके आकार, भार, सूर्य व उस ग्रह का गुरुत्वाकर्षण और सूर्य से दूरी पर निर्भर करता है। सूर्य अपनी धुरी पर पूरब से पश्चिम की घूमता है। सूर्य के पूरब से पश्चिम में घुर्णन एवं गुरुत्वाकर्षण के कारण ही पृथ्वी उसके विपरीत पश्चिम से पूरब की ओर घुर्णन करती है। जैसे किसी चक्करी (लट्टू) को घुमाकर छोड़ने से वह अपने अक्ष पर घूमने के साथ गोल गोल चक्कर लगाने लगती है। इसी तरह मशीनों में लगी गरारी जो एक दूसरी से खांचों के द्वारा जुड़ी रहती है। एक के घूमने पर दूसरी उसके विपरीत दिशा में स्वतः ही घूमने लगती है। पृथ्वी और सूर्य भी एक दूसरे के गुरुत्वाकर्षण द्वारा आपस में जुड़े हुए हैं। अत: जब सूर्य घुर्णन करता है तो पृथ्वी भी उसके विपरीत घुर्णन करती है साथ ही उसके चारों ओर चक्कर लगाने लगती है। अत्: हम कह सकते है कि सूर्य के बारें में हमारे मन मस्तिष्क में जो धारणाएँ पूर्व में बनी हुई है वो पूरी तरह से मिथ्या मालूम होती हैं। 

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