थार का सैनिक
काव्य साहित्य | कविता रामदयाल रोहज15 Jun 2020 (अंक: 158, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
थार का सैनिक है खेजड़ा
जब सूखे की मार से
सब हथियार डाल देते हैं
तब लू तप्ति को खाकर
अकेला डटा रहता है
मरुस्थान का महारथी
कौआ बढ़ाता है हौसला
अपनी बुलंद आवाज़ में
बार बार आती है लीलटांस
ज़रूरी संदेश लेकर
तभी आकाश गूँज उठता है
बादलों के विजय नगाड़ों से
गोड़ावण ख़ुशी में करते हैं ठुमके
ऊँट कर रहे हैं
वीर रस में यशोगान
संवाददाता गिद्ध चील सुना रहे हैं
आकाशवाणी से आँखों देखा हाल
थार का सैनिक बाँट रहा है
ताज़ा फल और पौष्टिक भोजन
भूखे मरु वासियों को
जगह जगह लगा दिए है
सेवार्थ शीतल हरे तंबू
घायल आम आदमी करते हैं विश्राम
संकट की घड़ियों
शिशु खग खेलते है कंधों पर
अपना सा प्यार पाकर
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