कार्तिक पूर्णिमा
काव्य साहित्य | कविता रामदयाल रोहज1 Dec 2022 (अंक: 218, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
गगन-सरोवर में कूदा है
मल-मल चाँद नहाए
उछले छींटे पानी के
तरु-वस्त्र भीगे जाए
तट पर आकर रजनीकर
अनगिन दीपक तैराए
सागर जगमग जगमग करता
देख चाँद मुस्काए
लौट रही मुस्कान धरा पर
कण कण को मुस्काए
हरित सलाइयों सी निकली
गेहूँ फ़सलें इठलाएँ
कृषक रखवाले रजनीभर
हलकारे ख़ूब लगाए
कंधों पर कंबल डाले
अग्नि पर हाथ तपाएँ
सरदी हाड़ कँपाती है
डांफर शर तेज़ चलाए
पर खेतों के तपसी को
इंच एक हिला ना पाए
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