वसंत
काव्य साहित्य | कविता रामदयाल रोहज9 Apr 2017
पीली सड़क पर नई नवेली गाड़ी दौड़ाते हुए
हॉर्न बजाते हुए
पहियों से झीना-झीना गर्द उड़ाते हुए
सालियों सी तितलियों पर चंचलता लुटाते हुए
प्रिया से मधुर मिलन को व्याकुल हो जाता है
वसंत चला आता है
काले-काले बक्सों से सरस संगीत सुनाते हुए
मन-मयूर को नचाते हुए
तेज़ लाईट जलाते हुए
कण-कण को हर्षाते हुए
भँवरों भी मधुर-मधुर बंशी बजाता है
वसंत चला आता है
पुरवाई के पलने में नव पल्लव को झुलाते हुए
वृद्ध ठूँठ को हरा बनाते हुए
प्रिया के मुँह से मायूसी हटाते हुए
घर-घर को महकाते हुए
दिल से प्रसून-प्रेम जमकर बरसाता है
वसंत चला आता है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अग्निदेही
- अचला सुन्दरी
- अनमोल ओस के मोती
- कार्तिक पूर्णिमा
- गर्मी की चुड़ैल
- चाँद का जादू
- छोटा सा गाँव हमारा
- तलवार थाम बादल आया
- ताल ठोंकता अमलतास
- थार का सैनिक
- धनुष गगन में टाँग दिया
- नाचे बिजली गाते घन
- नीली छतरी वाली
- पर्वत
- पर्वत की ज़ुबानी
- पाँच बज गये
- पानी
- पैर व चप्पलें
- प्यासी धरती प्यासे लोग
- फूलों की गाड़ी
- बरसात के देवता
- बरसात के बाद
- मरुस्थल में वसंत
- रोहिड़ा के फूल
- वसंत
- सच्चा साधक
- साहित्य
- स्वर्ण टीले
- हवन करता जेष्ठ
- हिम्मत की क़ीमत
- हे! नववर्ष
कहानी
किशोर साहित्य आलेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं