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हे! नववर्ष

हे! नववर्ष दीपक जला
करता तुम्हारी आरती
हर मुख पर मुस्कान दे
जय जय सदा हो भारती। 
 
धरती से निपजे हर वर्ष
अन्न धन का अंबार हो
तंगी ग़रीबी भूख की
पूरी तरह से हार हो। 
 
व्याधि विघ्न संकट बीमारी
सब दुखों का अंत हो
नव ऊर्जवित प्रभात हो
ख़ुशियाँ घरों में अनंत हो
  
मर्यादा की पगडंडियों पर
हर क़दम की शान हो
निर्भय बढ़े नन्ही कली
हर लता का सम्मान हो
 
तंगी ठगी बेरोज़गारी
डायनों का नाश हो
हर हाथ को सुकाम दे
कोई ना दासी दास हो
 
आए कभी ना आपदा
जग में सुरक्षित जान हो
शीतल रहे प्रकृति-माँ
करती सदा कल्याण हो। 
 
अब पड़ गई हैं जो दरारें
द्वेष दिल-मैदान में
बंधुत्त्व की सरिता बहे
सुखशांति महके प्रान में। 
 
सब छोड़कर युद्ध औ कलह
अब ध्यान नवनिर्माण में
विश्वमिलन आँगन में हो
वसुधागृह हो जहान में। 
 
हे! नववर्ष इतना सा दे
स्वागत तुम्हारा दिल से है
तुम हो दयालु कर्ण से
सपने मेरे तो तिल से हैं। 

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