हे! नववर्ष
काव्य साहित्य | कविता रामदयाल रोहज1 Jan 2023 (अंक: 220, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
हे! नववर्ष दीपक जला
करता तुम्हारी आरती
हर मुख पर मुस्कान दे
जय जय सदा हो भारती।
धरती से निपजे हर वर्ष
अन्न धन का अंबार हो
तंगी ग़रीबी भूख की
पूरी तरह से हार हो।
व्याधि विघ्न संकट बीमारी
सब दुखों का अंत हो
नव ऊर्जवित प्रभात हो
ख़ुशियाँ घरों में अनंत हो
मर्यादा की पगडंडियों पर
हर क़दम की शान हो
निर्भय बढ़े नन्ही कली
हर लता का सम्मान हो
तंगी ठगी बेरोज़गारी
डायनों का नाश हो
हर हाथ को सुकाम दे
कोई ना दासी दास हो
आए कभी ना आपदा
जग में सुरक्षित जान हो
शीतल रहे प्रकृति-माँ
करती सदा कल्याण हो।
अब पड़ गई हैं जो दरारें
द्वेष दिल-मैदान में
बंधुत्त्व की सरिता बहे
सुखशांति महके प्रान में।
सब छोड़कर युद्ध औ कलह
अब ध्यान नवनिर्माण में
विश्वमिलन आँगन में हो
वसुधागृह हो जहान में।
हे! नववर्ष इतना सा दे
स्वागत तुम्हारा दिल से है
तुम हो दयालु कर्ण से
सपने मेरे तो तिल से हैं।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अग्निदेही
- अचला सुन्दरी
- अनमोल ओस के मोती
- कार्तिक पूर्णिमा
- गर्मी की चुड़ैल
- चाँद का जादू
- छोटा सा गाँव हमारा
- तलवार थाम बादल आया
- ताल ठोंकता अमलतास
- थार का सैनिक
- धनुष गगन में टाँग दिया
- नाचे बिजली गाते घन
- नीली छतरी वाली
- पर्वत
- पर्वत की ज़ुबानी
- पाँच बज गये
- पानी
- पैर व चप्पलें
- प्यासी धरती प्यासे लोग
- फूलों की गाड़ी
- बरसात के देवता
- बरसात के बाद
- मरुस्थल में वसंत
- रोहिड़ा के फूल
- वसंत
- सच्चा साधक
- साहित्य
- स्वर्ण टीले
- हवन करता जेष्ठ
- हिम्मत की क़ीमत
- हे! नववर्ष
कहानी
किशोर साहित्य आलेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं