रोहिड़ा के फूल
काव्य साहित्य | कविता रामदयाल रोहज15 May 2020 (अंक: 156, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
खिले फूल लाखों रोहिड़ा
जैसे मरुधर की आँखें
धधक रहे अंगारों से
जलती तरुवर की शाखें
भरे हुए मकरंद से पूरे
फिर भी जलते जाते
कान पकड़ कर गर्मी को
महीनों से पुन: जगाते
मरु तांडव कम करने को
जप करता जीवन सारा
टीले-शिवलिंग पर हरदिन
करता रहता जल धारा
जिसे सजाकर बालों में
हर्षित होती बन बाला
बन जाती है ग़ज़ब परी
कंठों में पहन कर माला
खिले फूल से गोल गाल
यौवन छल-छल करता है
मुग्ध रवि निज क़दमों को
धीरे-धीरे धरता है
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