नीली छतरी वाली
काव्य साहित्य | कविता रामदयाल रोहज1 Jul 2019
चौराहे पर खड़ी है
एक नीली छतरी वाली लड़की
लेकिन उसकी छतरी में है
एक छेद
थाली जैसा गोल छेद
जिसमें से लगातार आ रही है
आग की लपटें
उसके गोल मटोल मुखड़े से
लगातार बह रही है
पसीने की नदियाँ
और बन गये है
नमकीन समंदर
दोपहर को वह छेद
आ जाता है
छतरी के शिखर पर
और धीरे धीरे लुढ़ककर
गिर गया एक तरफ़
फिर एकदम ग़ायब
लेकिन अब
उसी छतरी में हो गये
अरबों खरबों छेद
बाजरा मटर बैर और
नींबू के आकार के
यह देख लड़की हैरान है
कि इन छिद्रों से
आग नहीं
शीतलता बरस रही है
फिर अचानक
हो जाती है दुखी
अपनी हरी पोशाक देखकर
"ये दुष्ट दुश्शासन
क्यों छीन रहे है
लगातार मेरे वस्त्र"
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अग्निदेही
- अचला सुन्दरी
- अनमोल ओस के मोती
- कार्तिक पूर्णिमा
- गर्मी की चुड़ैल
- चाँद का जादू
- छोटा सा गाँव हमारा
- तलवार थाम बादल आया
- ताल ठोंकता अमलतास
- थार का सैनिक
- धनुष गगन में टाँग दिया
- नाचे बिजली गाते घन
- नीली छतरी वाली
- पर्वत
- पर्वत की ज़ुबानी
- पाँच बज गये
- पानी
- पैर व चप्पलें
- प्यासी धरती प्यासे लोग
- फूलों की गाड़ी
- बरसात के देवता
- बरसात के बाद
- मरुस्थल में वसंत
- रोहिड़ा के फूल
- वसंत
- सच्चा साधक
- साहित्य
- स्वर्ण टीले
- हवन करता जेष्ठ
- हिम्मत की क़ीमत
- हे! नववर्ष
कहानी
किशोर साहित्य आलेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं