नाचे बिजली गाते घन
काव्य साहित्य | कविता रामदयाल रोहज1 Jul 2020 (अंक: 159, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
नरमी सूरज की आँखों में
है बन्दी घटा- शलाखों में
रफ़्तार खगों की पाँखों में
थिरकन मुर्झाई शाखों में
थाप लगी है ढोलक पर
रंगमंच बन गया गगन
नाचे बिजली गाते घन
स्वर्ण सुन्दरी कमर लचीली
चमक इशारे आँख नशीली
नचा रही घन साथ हठीली
सृजन की बरसात रसीली
टूट रहे घुँघरू पायल के
धरती पर छन - छन
नाचे बिजली गाते घन
अभिनन्दन को शीश उठाए
नव पौधे लघु ताल बजाए
ऊँचे टीले मल मल नहाए
आलिंगन को बाहँ फैलाए
शिखी ज़ोर लगाकर बोला
गूँज उठा कानन
नाचे बिजली गाते घन
कृषक दर्शक बन देख रहे
दिल से करते तारीफ़ रहे
नद्य नाले नृत्य सीख रहे
झिंगुर ज़ोरों से चीख़ रहे
ज्वर उतरता धरती का
आनन्दित है कण कण
नाचे बिजली गाते घन
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