बरसात के बाद
काव्य साहित्य | कविता रामदयाल रोहज1 Jun 2020 (अंक: 157, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
बिजलियों के ब्रुश से
आसमान को धोकर
अच्छी तरह निचोड़कर
सुखाकर चली गई है
काली घटा।
आसमान और बिजलियों का रंग
धुलकर गिर पड़ा है
पृथ्वी पर चारों तरफ़।
मरुस्थल हो गया है
बड़ा ही सुहावना
कुकरमुता की पलटन खड़ी है
छोटे छोटे छाता ताने
चाँदी सा श्वेत मुकुट
पहने खड़ीं हैं
अनगिनत खुंबियाँ
विश्व सुंदरियों की तरह।
प्यासी पलाया झीलों के
सूखे होठों पर
आ गई मधुर मुस्कान।
झील तट आ बैठी है
मैंढकों की महापंचायत।
पलाया = वर्षा के खड़े पानी से बनी झील जो सूख जाती है
नाचती गाती खिलखिलाती
चल पड़ीं हैं नदियाँ
अपनी चुनरियाँ लहराकर
वर्षों बाद पुन:
शुरू हो गई है नौकादौड़
पक्षियों के पंखों में
आ गई है अजीब चंचलता
बेजान सी चिंकारों की टोली में
आ गई है जान में जान
रेतीले टीलों में
फिर से गूँज उठी है
गोड़ावण की हूम हूम
खेत खेत में हो गई है
मेले सी चहल पहल।
चिंकारा= हिरण की प्रजाति; गोड़ावण= एक प्रकार का पक्षी
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