मरुस्थल में वसंत
काव्य साहित्य | कविता रामदयाल रोहज15 Apr 2022 (अंक: 203, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
सर्दियों के बाद से
मरुधर पड़ा बेजान है
वैद्य वसंत की औषधी-
वायु ने भर दी जान है
लो गोल कच्छप से बड़े
टीले ने खोली आँख है
सोने सी काया पर हज़ारों
पुष्प की पोशाक है
ये ढाल पर पगडंडियाँ
जैसे कमर में करधनी
बेली दुपट्टा अंस पे
कीकर फलों की मुरकियाँ
है ब्रह्मडंडी खिल रही
पीले सुमन का बोरला
नाड़ों में दौड़ा दूध है
लो शान से ऊँची खड़ी
पूछो न बातें फोग की
अब गात मांसल हो गया
देता मरोड़ी मूँछ के
सिर पाग है घिंटाल का
झूमी है सेवण की कलंगी
है लचीली सी कमर
संग ही खड़ी ठिगनी सखी
भत्तल से झुककर मिल रही
इत्र लगाकर आ गई है
गौर वर्णी बूर भी
घर घर बनाती ढोकले
हंडियों में है गणगौर के
धनधन धनी है धोलफूला
रेत पर लेटा हुआ
है सैंकड़ों उजले सुमन
चाँदी से चमके है टके
खींपों की पतली मिर्च सी
लटकी खींपोली झूलती
तिनकों में ही रहकर सदा
रेशम नरम से भर गई
मरुथल की कोकिला कमेड़ी
है लगी अब कूकने
हर पेड़ को बतला रही
लो आ गए ऋतुराज है
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