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प्यासी धरती प्यासे लोग

गिद्ध टोह ले रहे है
पूरे प्रदेश में पेयजल की
दूर दूर दृगों के
दूरबीन से देखते है
वायु की सीढ़ी से
अंबर पर चढ़कर


धूप चुरा कर ले गई है
झील बाला की जल कटोरी
सहेली का दुःख देखकर
प्राण त्याग रही है मछलियाँ


ख़ाली हो चुकी है कुइयाँ-
पानी की बोतलें
सूखे कंठ उदास आँखें
प्यासी सिसकती वसुधा


ऊँचे आसमान को देखते है
थके हारे हिरन
आशाभरी भीगी दृष्टि से
भिक्षुक की तरह


मौन बैठा है टीला
सूखे घास का साफा बाँधे
डूबा हुआ है चिंता में
गर्दन झुकाकर
 

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