बरसात के देवता
काव्य साहित्य | कविता रामदयाल रोहज1 May 2022 (अंक: 204, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
मासूम मुर्झाए पौधे जब
अपना मुँह लटकाए
भीख माँगते जीवन की
कर जोड़े शीश झुकाए
खेतिहर भीगे नयनों से
नभ में ध्यान लगाए
थकी हुई बैलों जोड़ी
रुक रुक कर सुस्ताए
प्यासी धरती महीनों से
रो रोकर रात बिताए
साँझ सवेरे बालू से
मल मल कर चिड़िया नहाए
हवा घड़ों में घुस जाए
बूढ़े, बच्चे घबराए
गायों की टोली तट पर
जब बैठे आश लगाए
तब नभ मंदिर में बजते है
अपने आप नगाड़े
सोने का त्रिशूल चमकता
अनगिन सिंह दहाड़े
घंटों की टन टन ध्वनि
बरसात के देव पधारे
आँखों से ख़ुशियाँ छलकीं
धरती पर मोती आए
गर्मी भागी दुम दबाकर
शीतल पवन सुहाए
कण कण की आँखें चमकीं
है मंद मंद मुस्काए
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