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बाथ टब की होली

 अपने देश से यहाँ आ के बहुत कुछ पाया पर इस बहुत कुछ पाने में जो खोया वो बहुत कुछ से बहुत ज़्यादा था। अपने देश जैसी बात तो यहाँ है नहीं विशेषकर जब बात हो त्यौहारों की। सब कुछ जैसे छोटा हो जाता है, एक जगह में सिमट जाता है। आप सोच रहे होंगी कि मैं अचानक ये क्या रोना लेके बैठ गई । जानते हैं अभी होली आई थी - आई थी न। अरे भाई आई थी मैं इस बात को बार-बार क्यों कह रही हूँ। आप के लिये नहीं ख़ुद को यक़ीं दिला रही हूँ कि हाँ भई आई थी होली।
मैं आप को बताना चाहती हूँ कि मैं एक संवेदनशील लड़की हूँ और हर चीज़ में संवेदनाओं के साथ हास्य भी ढूँढ़ लेती हूँ। अब आप सोचेंगे कि मैं क्या कहना चाहती हूँ - आप पढ़ते रहिये मैं बताती जा रही हूँ। 

अरे रुक गए.. नहीं नहीं रुकिए नहीं पढ़ते रहिये। हाँ तो होली आई यहाँ पे यानी डैलस में होली सिकुड़ के मन्दिर के प्रांगण में सिमट जाती है; वहाँ मेला सा लगता है । पर देश वाली बात कहाँ। वहाँ पे रंग भी खेला जाता है पर एक दूसरे को पूछ-पूछ के रंग लगाया जाता है... क्यों भाई रंग लगा दूँ। यदि हाँ तो लगा दिया यदि आप अपने ग्रुप के साथ हैं तब ठीक वरना अनुमति लेते रहिये। यदि नहीं पूछा और रंग लगा दिया और ख़ुदा न ख़ास्ता उसको रंग से अलर्जी हुई तो बस आप की होली हो ली। बहुत पचड़ा होगा भाई । आनंद बाज़ार भी लगता है ये मुझको बहुत पसंद है खूब खाओ। .......अलग-अलग पकवान। 

पर जानते हैं मैं जहाँ रहती हूँ डेनटन मैं वहाँ से मन्दिर ५० मिनट की ड्राइव है। अब इतनी लम्बी दूरी तय कर के बच्चों को ले के जाओ फिर रंग लगाओ (पूछ-पूछ के) है न कितनी मेहनत का काम। ऐसा नहीं है कि मैं गई नहीं हूँ, मैं गई हूँ - तभी तो आप को ये सब बता रही हूँ, तब मेरे पास एक बेटी ही थी। अब इन छोटू महाराज के आने के बाद तो थोड़ा और मुश्किल हो गई। तो मैंने सोचा कि क्यों न घर में ही होली मनाई जाये। अब सोच तो लिया पर कहाँ किस जगह खेलूँ ये बहुत बड़ी समस्या आ गई। आप हँस रहे हैं न, कह रहें होंगे कि भाई घर है वहीं खेलो, सड़क है वहाँ खेलो, इतना सोचने की क्या बात है। हूम................ यहाँ अपने देश जैसी बात है कहाँ दोस्तो, घर के बाहर खेला तो शिकायत होगी और जो लीज़िंग ऑफिस के लोग हैं न वो ज़ुर्माना कर देंगे। होली के दिन फटका (चूना) लग जायेगा। और घर के अंदर खेला तो कार्पेट गंदा होगा और उस की सफ़ाई ख़ुद से तो होगी नहीं किसी को बुलाना होगा और उसके लिए देने होंगे आपनी गाढ़ी कमाई के डॉलर तो क्या किया जाए। फिर नज़र गई रेस्टरूम पे यानी कि बाथरूम पे। बस फिर क्या था.. हम घुस गए बाथ टब में खूब रंग लगाया एक दूसरे को। बच्चों को भी मज़ा आया क्योंकि आज के दिन घर में गंदा करने को ख़ुद माँ कह रही थी! खूब रंग उछाला गया.. थोड़ा डर तब भी था दीवारों का। उसके बाद बाथ टब में पानी भरा गया, उस में रंग डाला गया। और उस में डुबकी लगायी गई । मेरी बेटी तो बहुत ख़ुश थी, कहती है कि "आई लाईक कलर बाथ"। तो कलर बाथ के बाद साफ पानी से नहा के सभी बाहर आ गये तो दोस्तो हुई न बाथ टब की होली। पर एक बात बताऊँ जब देश में रंग खेलते थे तो बाद में बहुत नींद आती थी उसी तरह से बाथ टब होली के बाद भी नींद आई। दोस्तो यदि आप के पास अपना घर है तो आप बैक यार्ड में होली खेल सकते हैं पर नहाना भी वहीं पड़ेगा क्योंकि रंग में भीगे हुए आप घर के अंदर नहीं जा सकते वरना कार्पेट ख़राब होगा। तो अच्छा है कि मेरी तरह बाथ टब की होली ही खेली जाय।

जानते हैं - चाहती थी कि यहीं पे बस करूँ पर आगे भी कुछ था जो बताना चाहती थी। शाम को घर पे एक छोटी सी पार्टी रखी थी। खाना तो पहले से ही बना लिया था... बाक़ी थी पूड़ी कचौड़ी तलनी। भइया यहाँ का घर है तलने से पहले बहुत इंतज़ाम करने पड़ते हैं। खिड़की खोलो, महक सोखने वाली मोमबत्ती जलाओ, तब जा के तलो... वरना आने वालों को परेशानी होगी और आपके घर में खाने की खुशबू भर जायेगी। 

सब हो गया लोग आ गये। बातें की, हँसे पर, जब थोड़ी रात हुई आवाज़ धीमी कर ली हम ने। पडोसियों को परेशानी न हो इस लिए।

अपने देश में कब सोचता है कोई पड़ोसियों का, मेरा घर है जितनी मर्जी शोर मचाएँगे। 

खाना खाने के बाद मैंने सबकी टाइटिल पढ़ी, क्या कहा आप नहीं जानते टाइटिल क्या है अरे वही जो कॉलेजों और मोहल्लों में होली के समय एक बड़े से कागज़ पर लिख कर दीवार पर लगाई जाती थी कौन लगता था और कब लगता था ये कभी भी पता नहीं चलता था। याद आया कुछ हाँ थोड़ा-थोड़ा याद आया न ये टाइटिल दो पंक्तियों की कविता होती थी। होली में निकलती थी तो हँसी-मज़ाक वाली होती थी लेकिन कोई बुरा भी नहीं मानता था, तो मैंने भी कुछ वैसा ही सोचा और बना डाली सब की। सारे लोगों को बहुत ही मज़ा आया। फिर जब सब लोग जाने लगे तो आपस में एक दूसरे को टीका लगाया और धीरे से कहा होली है! तो भाई कुछ इस तरह मनी हमारी होली। आप सभी को होली की बहुत बहुत शुभकामनायें!!
 

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