ये मीडिया अगर मिल भी जाए तो क्या है
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता विजय नगरकर15 Apr 2021 (अंक: 179, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
(साहिर लुधियानी से माफ़ी माँगते हुए)
ये ’व्हाट्सएप्प’ ये ’ट्विटर’
ये ’मीडिया’ की दुनिया
ये ’लाइक’ के भूखे
समाजों की दुनिया
ये इंसान के दुश्मन
’लिंचिंग’ की दुनिया
ये ’फ़ॉरवर्ड’ के भूखे
’रिट्वीट’ की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल
भी जाए तो क्या है
ये दुनिया अगर मिल
भी जाए तो क्या है
हर एक ’पोस्ट’ बनावटी
हर एक ’कॉमेंट’ प्यासी
’मीडिया’ में उलझन
’फ़ॉलोवर्स’ में उदासी
ये दुनिया है या
’वर्चुअल आलम-ए- बदहवासी’
ये दुनिया अगर मिल
भी जाए तो क्या है
ये दुनिया अगर मिल
भी जाए तो क्या है
जहाँ एक ’ट्वीट’
है इंसान की हस्ती
ये बस्ती है मुर्दा
’चैट’ की बस्ती
जहाँ और जीवन
से है ’पोस्ट’ सस्ती
ये दुनिया अगर मिल
भी जाए तो क्या है
ये दुनिया अगर मिल
भी जाए तो क्या है
ग्रुप भटकती
है बदकार बनाकर
जवां ’हैशटैग’ सजते
है बाज़ार बनकर
जहाँ प्यार होता
है ’मीम’ बनाकर
ये दुनिया अगर मिल
भी जाए तो क्या है
ये दुनिया अगर मिल
भी जाए तो क्या है
जला दो इसे फूक
डालो ये ’व्हाट्सएप्प’
जला दो जला दो जला
दो इसे फूक डालो ये ’ट्विटर’
मेरे सामने से
हटा लो ये ’इंस्टाग्राम’
तुम्हारी है तुम ही
सँभालो ये ’फ़ेसबुक’
ये दुनिया अगर मिल
भी जाए तो क्या है
ये दुनिया अगर मिल
भी जाए तो क्या है.
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