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हमारी बेटी आबाद है

धान से भरा कलश
पैरों से छूकर
उसने गृह प्रवेश किया, 
साफ़ किए बर्तन में चेहरा निहारती 
वह मन मोर हो गई, 
 
उसने अपने हृदय को 
घर की सब वस्तुओं में बाँट दिया, 
कहीं काँच का पात्र टूटता है 
तो उसे वेदना होती है, 
 
वह अपनी धमनियों से
बच्चों का स्वेटर बुनती है, 
अथक मंथन करने पर भी जीवन में वह प्यासी है, 
 
उसकी वेदना की कम्पन ध्वनि 
पारिवारिक नित्य कोलाहल में
किसी को सुनाई नहीं पड़ती, 
घर से एकरूप होकर भी
वह पराई है, 
 
घर के पिंजरे में तोता मैना गा रहे हैं
किन्तु मानवीय संवेदनाओं के स्वप्न पक्षी
घर से उड़ कर भाग गए हैं, 
 
सुखचैन भोग लिप्सा में लिप्त सभी रिश्ते
सुविधा भोगी हो गए हैं 
और पिताजी कहते हैं कि “हमारी बेटी आबाद है”!

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टिप्पणियाँ

डॉ ममता पंत 2022/11/07 08:59 PM

बहुत खूब महोदय..... हमारी बिटिया आबाद है !

shaily 2022/11/07 08:46 PM

कितनी सच्चाई कितने सरल शब्दों में बताई। परायी लड़की न घर की ना ससुराल की

पाण्डेय सरिता 2022/11/07 07:56 PM

बहुत सुंदर रचना 'बेटी आबाद है'

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