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रूस यूक्रेन युद्ध में भाषा विवाद का बारूद

 

हाँ, यूक्रेन और रूस के युद्ध में रूसी भाषा को लेकर विवाद एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा रहा है, जो संघर्ष के सामाजिक और सांस्कृतिक आयामों को दर्शाता है। यह विवाद ख़ास तौर पर 2014 में शुरू हुए संकट से जुड़ा है, जब रूस ने क्रीमिया पर क़ब्ज़ा किया और पूर्वी यूक्रेन में डोनबास क्षेत्र में अलगाववादी आंदोलन को समर्थन दिया। 

2014 में यूक्रेन में यूरोमैडन विरोध प्रदर्शनों के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को सत्ता से हटा दिया गया। इसके बाद नई सरकार ने रूसी भाषा की स्थिति को लेकर नीतियाँ बदलीं, जिसे रूस और रूसी भाषी यूक्रेनियनों ने अपने ख़िलाफ़ क़दम माना। विशेष रूप से, फरवरी 2014 में यूक्रेनी संसद ने 2012 के उस क़ानून को रद्द करने की कोशिश की, जो रूसी को क्षेत्रीय भाषा का दर्जा देता था। हालाँकि यह निर्णय तुरंत लागू नहीं हुआ और बाद में इसे ख़ारिज कर दिया गया, लेकिन इस क़दम ने पूर्वी यूक्रेन और क्रीमिया में रूसी भाषी आबादी के बीच असंतोष को बढ़ा दिया। रूस ने इसे अपने हस्तक्षेप के औचित्य के रूप में इस्तेमाल किया, यह दावा करते हुए कि वह रूसी भाषियों के अधिकारों की रक्षा कर रहा है। 

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने बार-बार कहा कि यूक्रेन में रूसी भाषी अल्पसंख्यकों पर कथित अत्याचार हो रहे हैं, जिसे उन्होंने 2022 के पूर्ण पैमाने पर आक्रमण के लिए एक कारण के रूप में प्रस्तुत किया। दूसरी ओर, यूक्रेन का कहना है कि उसकी नीतियाँ राष्ट्रीय पहचान और यूक्रेनी भाषा को मज़बूत करने के लिए हैं, न कि रूसी भाषियों के ख़िलाफ़। 

डोनबास (डोनेट्स्क और लुहान्स्क) जैसे क्षेत्रों में, जहाँ रूसी भाषा व्यापक रूप से बोली जाती है, स्थानीय लोगों ने यूक्रेनी सरकार की नीतियों को सांस्कृतिक दमन के रूप में देखा। इसी तरह, क्रीमिया में 2014 के जनमत संग्रह (जिसकी वैधता पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद है) के दौरान रूसी भाषा और पहचान एक बड़ा मुद्दा बना। 

हालाँकि, यह विवाद सिर्फ़ भाषा तक सीमित नहीं है—यह गहरे ऐतिहासिक, राजनीतिक और क्षेत्रीय तनावों से जुड़ा है। रूस और यूक्रेन के बीच सांस्कृतिक और भाषाई सम्बन्ध सैकड़ों वर्षों पुराने हैं, लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद से यूक्रेन ने अपनी स्वतंत्र पहचान को मज़बूत करने की कोशिश की, जिसे रूस अपने प्रभाव क्षेत्र पर हमले के रूप में देखता है। इस तरह, रूसी भाषा का मुद्दा युद्ध में एक प्रतीकात्मक और व्यावहारिक विवाद दोनों बन गया। 

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