किसी के बाप की हिंदी थोड़ी है
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता विजय नगरकर1 Nov 2020 (अंक: 168, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
अगर ख़िलाफ़ है तेरी शाही ज़ुबान,
होने दो, आम हिंदुस्तानी थोड़ी है
ये सब धोका है, कोई भाषा थोड़ी है
ज़ुबान ए जंग करेंगे तो हिंदुस्तानी बेज़ुबान होगी
तेरे मेरे घर से मादरी ज़ुबान बेसहारा होगी
आपसी झगड़े में अंग्रेज़ी आएगी तेरे मेरे मकान
यहाँ हर मालिक ग़ुलाम होगा अपने मकान।
मैं जानता हूँ की अंग्रेज़ी भी कम नहीं . . .
लेकिन हमारी तरह मेरी ज़ुबान की जान थोड़ी है
हमारे मुँह से जो निकली वही हिंदी है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबां थोड़ी है
जो आज ज़बान-ए-मसनद है कल नहीं होंगे
किराएदार है परायी ज़ुबान, ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की हिंदी में
किसी के बाप की हिंदी थोड़ी है
(स्व. राहत इंदौरी से माफी माँगते हुए)
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