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हस्ताक्षर पहचान है

आज कल मैं रिश्तेदार के घर आया हूँ। उनके परिवार का छोटा बच्चा हस्ताक्षर की नक़ल कर रहा था। वह चित्रकला में माहिर है। चित्रकला उसका रुची का विषय है। उसने हमारे हस्ताक्षर की नक़ल उतारकर हूबहू हमारा हस्ताक्षर प्रस्तुत किया। यह देख कर मुझे आश्चर्य हुआ। 

मैंने उसे मेरे हस्ताक्षर की नक़ल उतारने के लिए कहा। वह मेरा हस्ताक्षर देख कर कहने लगा, “अंकल, आपका सिग्नेचर समझ में नहीं आता, यह नक़ल उतारने के लिए बहुत कठिन है|”

मैंने यह देखा कि वह अँग्रेज़ी हस्ताक्षर की हूबहू नक़ल कर रहा था। 

मेरा हस्ताक्षर देवनागरी लिपिबद्ध था। उसकी नक़ल उतारने में वह असमर्थ था। 

वह कहने लगा, “अंकल, आप अँग्रेज़ी में सिग्नेचर लिखिए, मैं तुरंत नक़ल करके दिखाता हूँ|” 

वह अँग्रेज़ी माध्यम से पढ़ाई कर रहा है। उनका सारा काम रोमन लिपि में किया जाता है। महाराष्ट्र में मराठी अनिवार्य विषय है। लेकिन इस विषय में रुचि ना होने के कारण नए बच्चे भारतीय भाषाओं में बहुत कच्चे हैं। उन्हें भारतीय भाषाओं में लिखना कठिन लगता है। मराठी हिंदी लिखते समय शब्द ढूँढ़ने पड़ते हैं। 

तब मुझे मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग प्रमुख प्राध्यापक, लेखक, समीक्षक डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय जी का लेख याद आया। जिस लेख में उन्होंने लिखा था कि ऑनलाइन पासवर्ड लिखते समय भारतीय भाषाओं का प्रयोग करें। भारतीय भाषाओं का पासवर्ड कोई साइबर अपराधी आसानी से क्रैक नहीं कर पाता। साइबर अपराध से बचाने के लिए हमारी भाषा सहायक है। 

आजकल सभी लकीर के फ़क़ीर है। हस्ताक्षर हेतु अँग्रेज़ी का मोह त्याग नहीं पाते। भारतीय भाषाओं के पासवर्ड हो अथवा हस्ताक्षर कोई आसानी से क्रैक नहीं कर सकता। 

एक बार किसी पॉलिसी के संदर्भ में, मैं एचडीएफ़सी बैंक गया था। उनके द्वारा दिए गए फ़ॉर्म पर मैंने हिंदी में हस्ताक्षर किए। यह देख कर वहाँ के मैनेजर ने मुझे केबिन में बुलाया और कहा, “आपकी पॉलिसी का निपटारा जल्दी होने के लिए आप अँग्रेज़ी में हस्ताक्षर करें।” 

तब मैंने अँग्रेज़ी में हस्ताक्षर करने से इनकार किया। तब उन्होंने अपने उच्च अधिकारी से फोन पर बात की। उनके मार्गदर्शन के अनुसार मुझे, “वर्नाकुलर” भाषा संबंधित फ़ॉर्म भरकर देना पड़ा। वर्नाकुलर भाषा का प्रयोग करने वाले ग्राहकों के लिए एक विशेष अतिरिक्त फ़ॉर्म भरना पड़ता है, यह हमारे स्वतंत्र भारत की विडंबना है। मुझे यह घोषित करना पड़ा की मेरा हस्ताक्षर हिंदी अर्थात्‌ देवनागरी में लिखा गया है। 

क्या बैंक के सभी अधिकारी, कर्मचारी वर्ग अभी भी अँग्रेज़ है जो भारतीय भाषाओं को नकारते है? हमारी भारतीय भाषा कब तक वर्नाकुलर रहेगी। 

अपनी भारतीय भाषा के प्रति सजग जागरूक होना चाहिए। 

क़ानूनी दृष्टिकोण से देखें तो कोई भी हस्ताक्षर यह उस व्यक्ति की निजी पहचान है। यह निजी पहचान प्रस्तुत करने के लिए वह अपनी मातृ भाषा का प्रयोग कर सकता है। इस देश के क़ानून और संविधान के अनुसार हम देश के सभी अधिसूचित भारतीय भाषाओं में अपना आवेदन प्रतिवेदन अथवा शिकायत प्रस्तुत कर सकते हैं। तब हमारा हस्ताक्षर हम अपनी मातृ भाषा में प्रस्तुत करने में क्या दिक़्क़त है? 

भारतीय रिज़र्व बैंक की वेब साइट पर अनेक आदेश संकलित किए है जिसमें चेक, कार्यालयीन काग़ज़ातों पर हिंदी हस्ताक्षर और कामकाज करने की अनुमति प्रदान की है। 

लिंक: https://m.rbi.org.in//scripts/NotificationUser.aspx?Id=5159&Mode=0

आइए,  हम अपना हस्ताक्षर अपनी भाषा में प्रस्तुत करें और सुरक्षित रहे।

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