स्कूल में मतदान
कथा साहित्य | लघुकथा विजय नगरकर15 May 2024 (अंक: 253, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
एक स्कूल में मतदान की व्यवस्था की गई थी। शहर के अनेक मतदाताओं ने अपना मत डाला। मतदान संपन्न होने के बाद सभी अधिकारी, कर्मचारी वर्ग ने मतदान यंत्र सील करके स्कूल के एक कमरे में ताला लगाकर बंद कर दिया। सभी अपने घर चले गए।
स्कूल का प्रांगण शांत हुआ।
आधी रात के समय पर स्कूल की चारों दीवारें बात करने लगी।
उत्तर वाली बोली, “कितनी शान्ति फैली है, दिनभर मतदान का कोलाहल था।”
दक्षिण वाली बोली, “सारा दिन मच-मच था, माथा ठनक रहा है।”
पूर्व वाली बोली, “तुम दोनों भाग्यवान थीं, मेरे दीवार में प्रवेश द्वार था। मतदाताओं की लंबी लाइन लगी थी, साँस लेना मुश्किल था।”
पश्चिम वाली बोली, “मेरे दीवार में निकास द्वार था, जानेवाले पान तमाकू, गुटखा की पिचकारी लगा रहे थे।”
उत्तर, पश्चिम वाली बोली, “हमारी दीवार में खिड़कियाँ थीं, गर्मी की लू अंदर आ रही थी।”
तभी पूर्व वाली बोली, “आपने देखा मतदान करने शिक्षा मंत्री भी आया था।”
पश्चिम वाली बोली, “हाँ हमने देखा कैसे स्कूल के प्रिंसीपल, सभी टीचर उनके आगे आगे घूम रहे थे।“
उत्तर वाली बोली, “उनको कोई लाज लज्जा शर्म नहीं आती, सरकारी स्कूल के क्या हाल हुए हैं, दीवारों खिड़कियों के बुरे हाल है, रंग उड़ गया है, फ़र्श गंदा टूटा फूटा है, छत से कभी पानी नीचे गिरता है, कभी धूप से स्कूल के बच्चे परेशान हैं।”
दक्षिण वाली बोली, “हम क्या कर सकते है, हर पाँच सालों के बाद यही चर्चा करेंगे, कब हालात सुधरेंगे?”
पूरब वाली बोली, “सुना है इस बजट में कुल जीडीपी का दो प्रतिशत शिक्षा विभाग को दिया है।”
पश्चिम वाली बोली, “ऊँट के मुँह जीरा, ये नई पीढ़ी को अच्छी शिक्षा देकर उनका भविष्य उज्जवल करेंगे।”
उत्तर वाली बोली, “आज आपने देखा कितने धनी राजनेता, ठेकेदार, व्यापारी, अधिकारी मतदाता आए थे, जिनके घर राजमहल जैसे सजाए गए हैं।”
तभी मतदान यंत्र से आवाज़ निकली, “चुप रहो, कितना चटर-पटर कर रही हो, मेरा दम घुट रहा, न जाने कब मतगणना होगी, मेरी आत्मा मुक्त होगी!”
फिर सुबह हुई। मतगणना पूरी हुई, परिणाम घोषित हुए।
फिर ग़रीब परिवार के बच्चों से स्कूल जीवंत हुआ।
फिर बच्चे गाने लगे “सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुल्सिताँ हमारा”
स्कूल की चारों दीवारें डोलने लगीं।
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