भौंकते कुत्ते
कथा साहित्य | लघुकथा विजय नगरकर1 May 2021 (अंक: 180, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
शहर का एक व्यस्त चौराहा। सुबह सड़क के बीच भीड़ जमा हो गई थी। आपस में चर्चा हो रही थी कि यह लाश किसकी होगी?
किसी व्यक्ति की लावारिस लाश पड़ी थी।
एक बच्चे ने अपने पिता को कहा, "पिताजी, वहाँ किसी की लाश पड़ी हुई है। चलो जाकर देखते हैं।"
पिता ने ग़ुस्से में कहा, "नहीं बेटा, स्कूल जाने में देर हो जाएगी, चलो।"
"अजी सुनते हो, वहाँ किसी की लाश पड़ी हुई है।" पत्नी के इस कुतूहल पर बिगड़ते हुए पति ने कहा, "हमें उसकी क्या पड़ी है? चलो हमारी 7.30 की ट्रेन मिस हो जाएगी!"
कुछ लोग इकट्ठा होकर चर्चा करने लगे।
ट्रैफ़िक रुक गया था।
थोड़ी ही देर में वहाँ पुलिस की गाड़ी आकर रुक गई। पुलिस को देखकर किसी ने कहा, "अरे चलो फूटो यहाँ से, पुलिस आ गयी है। खाली-पीली हमको परेशान करेगी।"
कोई दूसरा बोल रहा था कि "यहाँ किसके पास वक़्त है, कि पुलिस थाने जाकर रिपोर्ट करें।"
भीड़ यकायक ग़ायब हो गयी।
इसी चौराहे के एक कोने में एक कुत्ते की लाश पड़ी हुई थी। किसी कार से टकरा गया होगा। वहाँ चार कुत्ते इकट्ठा हो गए थे। चारों कुत्ते पास से गुज़रती हर कार के पीछे भौंकते हुए भाग रहे थे। अपना असंतोष वे हर कार पर उतार रहे थे। अंततः नगरपालिका की गाड़ी आकर कुत्ते की लाश को उठा ले गयी। इस गाड़ी के पीछे चार कुत्ते भौंकते हुए दौड़ रहे थे।
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पदमावती 2021/05/01 05:43 AM
आपकी यह कहानी सीधे दिल पर चोट करती है । सोचने पर मजबूर हैं कि कहीं हम भी तो उसी भीड़ का हिस्सा नहीं है? बहुत संवेदनशील । बधाई