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शब्दों का सफ़र: शब्दों के साथ विश्व भाषा की यात्रा

 

शब्दों का सफ़र के कोषकार सुप्रसिद्ध संपादक, पत्रकार, ब्लॉगर, लेखक श्री अजीत वडनेरकर जी ने शब्दों व्युत्पत्ति पर गहन अभ्यास करके परिश्रम पूर्वक हिंदी साहित्य में एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक के 3 भाग अब तक राजकमल प्रकाशन दिल्ली द्वारा जारी किए गए हैं। आगामी चौथा भाग शीघ्र ही प्रकाशित होने जा रहा है। यह पुस्तक भाषा प्रेमी, अनुवादक, लेखक, पत्रकार तथा आम पाठकों के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। 

पत्रकार के रूप में कार्य करते समय अजित वडनेरकर जी ने हिंदी क्षेत्र तथा महाराष्ट्र के प्रमुख शहरों में काम किया है। समाचार माध्यम में प्रयुक्त शब्दों की व्युत्पत्ति की जानकारी और उस शब्दों की उत्पत्ति के बारे में जानना बहुत कठिन चुनौती रही होगी। अजीत जी ने इस कोश में सिर्फ़ शब्दों के अर्थ नहीं बल्कि शब्द उत्पत्ति, मूल भाषा, संस्कृति, देश, प्रदेश के बारे में भी ललित शैली में लिखा है। आप इस शब्दकोश का कोई भी पन्ना खोलकर किसी विशेष शब्दों की जानकारी हासिल कर सकते हैं। 

“शब्दों के सफ़र” में शब्दों का इतिहास और उस शब्द की उत्पत्ति जानने और समझने के लिए मैं हमें गहरे पानी में नीचे जाना पड़ता है तभी हम शब्दों के मोती हासिल कर सकते हैं। शब्दों की जानकारी से हमारी भाषा समृद्ध होती है उसके साथ साथ उस भाषा संस्कृति से भी हमारी मित्रता बढ़ती है। भाषा विज्ञान की दृष्टिकोण से यह एक अत्यंत मूल्यवान कोश है। 

बहुभाषिकता और पर्यटन से भाषा की दृष्टि विकसित होती है। अजित वडनेरकर जी जिस छोटे क़स्बे से निकलकर महानगरों में काम करने लगे तब उनके साथ शब्दों का सफ़र जारी रहा। 

उन्होंने 2005 में “शब्दों का सफ़र” नाम से दैनिक भास्कर में शब्द व्युत्पत्ति आधारित एक साप्ताहिक कॉलम का निरन्तर लेखन किया। 2006 में इसी नाम से इंटरनेट पर ब्लॉग लेखन से चर्चित रहे। जिसका शुमार हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लॉग्स में होता है। 

समांतर कोश के सुप्रसिद्ध कोशकार स्व. अरविन्द कुमार जी ने अजीत वडनेरकर जी के बारे में महत्त्वपूर्ण टिप्पणी प्रदान की है जिसे “शब्दों का सफ़र” के पहले पड़ाव के मुखपृष्ठ पर स्थान मिला है। वे लिखते है कि:

“अजित वडनेरकर प्रमाण हैं कि हिन्दी रुकेगी नहीं। कम से कम लेकिन रोचक शब्दों में अधिक से अधिक कह देना उनके शब्दों के सफ़र की पहचान है। उनकी छोटी-छोटी ललित लोल रचनाओं में रवानी, प्रवाह, लय का आस्वाद है। सच तो ये है कि यह मानवता के विकास का महासफ़र है।”

यह किसी कोशकार के लिए सबसे मूल्यवान पुरस्कार, आशीर्वचन है। 

इस कोश की भूमिका स्पष्ट करते हुए अपनी बात में लिखते है कि:

“उत्पत्ति की तलाश में निकलें तो शब्दों का बहुत दिलचस्प सफ़र सामने आता है। लाखों सालों में जैसे इन्सान ने धीरे-धीरे अपनी शक्ल बदली, सभ्यता के विकास के बाद से शब्दों ने धीरे-धीरे अपने व्यवहार बदले। एक भाषा का शब्द दूसरी भाषा में गया और अरसे बाद एक तीसरी ही शक्ल में सामने आया। शब्द व्युत्पत्ति और विवेचना करने और जानने की ललक पश्चिम के बौद्धिक व सामान्य पढ़े-लिखे समाज में तो नज़र आती है जबकि संस्कृत की समृद्ध कोश परम्परा के बावजूद हिन्दी में शब्द व्युत्पत्ति के प्रति जिज्ञासा का अभाव है। शब्द-विलास की बात छोड़िए, सामान्य शब्द की अर्थगर्भिता को गहराई से जानने और उसके विविध अर्थ आयामों को समझने की ज़रूरत संवाद माध्यमों से जुड़े लोगों, ख़ासतौर पर पत्रकारों को भी अब महसूस नहीं होती। हिन्दी में साहित्य की तमाम विधाओं में ख़ूब लिखा जाता है मगर शब्द व्युत्पत्ति पर बहुत कम सामग्री है। जो सामग्री है, वह भी भाषाविज्ञान की दुरूह स्थापनाओं और सिद्धांतों के आवरण में लिपटी है। क़रीब डेढ़ सौ साल पहले शुरू हुई हिन्दी पत्रकारिता ने आज़ादी के महायज्ञ में अंग्रेज़ी भाषा और अंग्रेज़ी शासन से डटकर मुक़ाबला किया। आम लोगों में निज भाषा का गौरव भरा। आज़ादी के बाद आमजन की हिन्दी को संस्कारित करने में अख़बारों की ज़बर्दस्त भूमिका रही क्योंकि देश के सामान्य शिक्षित समुदाय का मुद्रित अक्षर से रिश्ता साहित्य के ज़रिए नहीं बल्कि समाचार-पत्रों के ज़रिए था। अख़बारों के सम्पादक मंडल में साहित्यकार या साहित्यप्रेमी सम्पादक होते थे। तब भाषा, वर्तनी और शब्दों की त्रुटियों पर बहस होती थी। इस देश का भूगोल ‘कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी’ वाली उक्ति से समझा जा सकता है। हमारी विविधतापूर्ण संस्कृति का असर राष्ट्रभाषा हिन्दी में झलकता है।”

शब्दों का सफ़र एक पुस्तक है जो शब्दों के इतिहास और विकास पर प्रकाश डालती है। यह पुस्तक शब्दों के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करती है, जैसे कि शब्दों की उत्पत्ति, शब्दों के अर्थ और शब्दों का उपयोग। पुस्तक में शब्दों के बारे में कई रोचक और अज्ञात तथ्य भी शामिल हैं। 

पुस्तक के लेखक, अजित वडनेरकर, एक भाषाविद् और लेखक हैं। वे शब्दों के बारे में एक विद्वान व्यक्ति हैं और वे शब्दों के बारे में अपनी जानकारी और अपने ज्ञान को पाठकों के साथ सोशल मीडिया पर हमेशा साझा करते हैं। हम जैसे अनेक भाषा प्रेमी, छात्र उनके शब्दों की जानकारी यत्र तत्र प्रस्तुत करते हैं। पुस्तक में वडनेरकर ने शब्दों के बारे में अपनी गहरी समझ और ज्ञान को बहुत ही सरल और सुगम भाषा में प्रस्तुत किया है। 

अजित वडनेरकर जी को मध्यप्रदेश सरकार द्वारा राष्ट्रीय हिंदी सेवा सम्मान पुरस्कार प्रदान किया गया है। 

यदि आप शब्दों के बारे में जानने में रुचि रखते हैं, तो मैं आपको “शब्दों का सफ़र ” पुस्तक पढ़ने की सलाह दूँगा। यह पुस्तक आपको शब्दों के बारे में बहुत कुछ सिखाएगी और आपको शब्दों के साथ अपनी बातचीत के बारे में नई तरह से सोचने के लिए प्रेरित करेगी। वडनेरकर जी शब्दों के विभिन्न स्रोतों पर चर्चा करते हैं, जिसमें संस्कृत, फ़ारसी, अरबी, अंग्रेज़ी और अन्य भाषाएँ शामिल हैं। वे यह भी दिखाते हैं कि कैसे शब्द समय के साथ बदल गए हैं, और विभिन्न संस्कृतियों और समाजों के साथ किस तरह संवाद रहा है। 

इस कोश की भूमिका में अपनी बात में वडनेरकर शब्दों के महत्त्व पर भी ज़ोर देते हैं। वे कहते हैं कि शब्द हमारे विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने का एक शक्तिशाली माध्यम हैं, और वे हमारे समाज और संस्कृति को आकार देने में मदद करते हैं। 

शब्दों का सफ़र एक महत्त्वपूर्ण और विचार-उत्तेजक कोश है जो शब्दों के बारे में हमारी समझ को गहरा करता है। यह पुस्तक सभी को पढ़ना चाहिए जो भाषा और संस्कृति में रुचि रखते हैं। 

मैं शब्दों का सफ़र के लेखक अजित वडनेरकर को उनकी मेहनत और समर्पण के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ। उन्होंने एक ऐसा कोश लिखा है जो शब्दों के बारे में हमारी समझ को ऊँचाई प्रदान करता है। यह एक आकर्षक और ज्ञानवर्धक यात्रा है। 

इस पुस्तक के बारे विद्वान लेखकों की कुछ टिप्पणियाँ महत्त्वपूर्ण है। जैसे:

“अजित वडनेरकर कई वर्षों से शब्दों के इस रोमांचक सफ़र में हम सबको शामिल करते रहे हैं। कमाल की सूझ-बूझ है उनकी और कमाल की मेहनत। कहने का अंदाज़ निराला। ‘शब्दों का सफ़र’ कितने रोचक, प्रामाणिक और विश्वसनीय ढंग से एक-एक शब्द के विकास-क्रम और अन्य शब्दों के साथ उसके सम्बन्ध को पाठक के सामने रखता है, यह पढ़कर ही जाना जा सकता है। सफ़र के इस तीसरे पड़ाव पर उन्हें बधाई और साथ ही शुक्रिया भी।”

डॉ. पुरुषोत्तम अग्रवाल

“ब्लॉग-जगत में भाषा के प्रेमियों के बीच अजित वडनेरकर का एक बहुत रसीला ब्लॉग, शब्दों का सफ़र, अर्से से लोकप्रिय रहा है। अजित जी ने आम बोलचाल के शब्दों के रहस्य खोल कर भाषा की अंतरराष्ट्रीय और संस्करण की जटिल और लंबी प्रक्रिया से भी पाठकों का परिचय कराया है। इसका पुस्तकाकार प्रकाशन देखना सुखद है।”

–मृणाल पाण्डे, वरिष्ठ कथाकार-पत्रकार

“अजित वडनेरकर प्रमाण है कि हिंदी रुकेगी नहीं। कम से कम लेकिन रोचक शब्दों में अधिक से अधिक कह देना उनके शब्दों के सफ़र की पहचान है। उनकी छोटी-छोटी ललित लोल रचनाओं में रवानी, प्रवाह, लय का आस्वाद है। सच तो ये है कि यह मानवता के विकास का महासफ़र है।”

–अरविन्द कुमार, ख्यात कोशकार 

“बहुत शोधपरक, उपयोगी और महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ। हिंदी में इतनी संलग्नता के साथ ऐसा परिश्रम करने वाले विरले ही होंगे। तपस्या कहूँ कि लगन कि साधना . . .”

–उदय प्रकाश, वरिष्ठ साहित्यकार

भाषा विज्ञान की इस महत्त्वपूर्ण उपलब्धि को देखते हुए मेरा मानना है कि इस कोष का अध्ययन विश्वविद्यालय स्तर पर होना चाहिए। इस कोश की जानकारी सभी आम पाठक वर्ग, छात्र, अनुवादक, लेखक, पत्रकार बंधुओं तक पहुँचनी चाहिए। 

 


अजित वडनेरकर: एक परिचय
वरिष्ठ पत्रकार, संपादक, कोषकार, ब्लॉगर, लेखक
ईमेल: wadnerkar.ajit@gmail.com 

जन्म: 10 जनवरी, 1962 को सीहोर, मध्यप्रदेश में। 
शिक्षा: मध्यप्रदेश के सबसे पिछड़े जिलों में एक बारह हजार की आबादी वाले ज़िला मुख्यालय राजगढ़ (ब्यावरा) में संस्थागत शिक्षा प्राप्त की। विक्रम विश्वविद्यालय की सम्बद्धता वाले राजगढ़ के शासकीय डिग्री कॉलेज से हिन्दी साहित्य में एम. ए.। इसी दौरान प्रसिद्ध कथाकार शानी के साहित्य पर लघुशोध प्रबन्ध की रचना ।

सम्प्रति: सेवानिवृत्ति के बाद भोपाल वासी।
कार्यक्षेत्र:
इन्दौर से प्रकाशित हिन्दी के प्रतिष्ठित अख़बार ‘नई दुनिया’ में सम्पादक के नाम पत्रों वाले स्तम्भ में नियमित लेखन। ‘नई दुनिया’ में कुछ लेखों का प्रकाशन जिनका उद्देश्य जेबखर्च की राशि जुटाना था। 1983-85 के दौरान ख्यात शिक्षाविद-लेखक डॉ. विश्वनाथ मिश्र के साथ उनके पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च के लिए बतौर जूनियर रिसर्च फैलो कार्य। डॉ. साहब के मार्गदर्शन में ही प्रसिद्ध नाटककार शंकर शेष के नाटकों पर पीएच.डी. हेतु शोध। 1985 में टाइम्स ऑफ़ इंडिया समूह के हिन्दी दैनिक नवभारत टाइम्स में उप-सम्पादक के रूप में पत्रकारीय जीवन की शुरुआत। दूरदर्शन और आकाशवाणी के लिए भी काम किया। कल्चरल रिपोर्टिंग में विशेष रुचि। 1996 से 2000 तक विभिन्न टीवी चैनलों के लिए मध्यप्रदेश, राजस्थान महाराष्ट्र से रिपोटिंग 2000 में दैनिक भास्कर के न्यूज़रूम में । 2003-2004 के बीच दिल्ली में रहकर स्टार न्यूज से सम्बद्ध ।

2004 से लगातार दैनिक भास्कर में वरिष्ठ पत्रकार,संपादक के रूप में कार्य किया। 2005 में ‘शब्दों का सफ़र’ नाम से दैनिक भास्कर में शब्द व्युत्पत्ति आधारित एक साप्ताहिक कॉलम का निरन्तर लेखन। 2006 में इसी नाम से इंटरनेट पर ब्लॉग का प्रकाशन जिसका शुमार हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लॉग्स में होता है।

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