चुप्पी के चौखट पर शब्दों की रंगोली कविता संग्रह की समीक्षा
शायरी विजय नगरकर1 Apr 2025 (अंक: 274, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
समीक्षित पुस्तक: चुप्पी के चौखट पर शब्दों की रंगोली (कविता संग्रह)
लेखक: डॉ. पूजा झा
प्रकाशक: कॉस्मिक बुक्स ( Cosmic Books Publishers Pvt.Ltd, 22 Maruti City Extension Shamshabad Road,Agra 282001 Uttar Pradesh)
ई-मेल: cosmicpublication@gmail.com
आईएसबीएन: 978-93-5900-381-8
प्रकाशन का वर्ष: 2025
डॉ. पूजा झा एक नवोदित कवियत्री हैं, जिनकी कविताओं में प्रकृति और मानव जीवन के भावों का सुंदर मिलाप दिखाई देता है। उनकी रचनाओं में प्रकृति के विविध रूप-रंग और मानव के स्वर, अनुभव, विचार तथा चिंतन का ऐसा मिश्रण है जो पाठक को गहरे तक प्रभावित करता है। उनकी संक्षिप्त काव्य पंक्तियाँ और मुक्तक जीवन की गहराइयों से मोती की तरह चमकते हैं, जो न केवल भावनात्मक गहराई लिए हुए हैं, बल्कि नई पीढ़ी को आकर्षित करने की शक्ति और युक्ति भी रखते हैं।
उनकी कविता ‘उदासियों ने मन में बहुत दिनों तक डेरा जमाए रखा . . .’ में उदासी और उल्लास के बीच एक संवादात्मक चित्रण है। यहाँ कवयित्री दुख को छुट्टी देकर जीवन को रंगों से सजाने की बात करती हैं, जो एक सकारात्मक दृष्टिकोण को उजागर करता है। इसी तरह ‘हम तुम मिलकर एक नई शुरूआत करें . . .’ में सामूहिकता और ख़ुशियों को बाँटने की भावना झलकती है, जहाँ दर्द को पीछे छोड़कर मुस्कान के महल बनाने की प्रेरणा दी गई है। यह पंक्तियाँ सहानुभूति और आशावाद का संदेश देती हैं।
‘सपनों के बीज बो कर विदा हुई अब रात . . .’ में सपनों और लक्ष्यों की तुलना बीज और फ़सल से की गई है, जो सुबह की किरणों और लगन की हवा से पोषित होकर साकार होते हैं। यहाँ प्रकृति और मानव प्रयास का सुंदर संगम देखने को मिलता है। वहीं ‘नभ में कनक कलशों का तोरण द्वार बना . . .’ में प्रकृति के सौंदर्य का अलौकिक वर्णन है, जो स्वर्ग जैसा आनंद प्रदान करता है और अनंत काल तक तृप्ति की खोज को दर्शाता है।
हालाँकि, उनकी कविताओं में कुछ विचारों की पुनरावृत्ति देखी गई है, जो शायद रचनात्मक विस्तार की कमी को दर्शाती है। अभी तक वे मुख्य रूप से मुक्तक लिखती रही हैं, जिनमें संक्षिप्तता और गहनता है, परन्तु अब उनके लिए संपूर्ण कविताएँ लिखना आवश्यक प्रतीत होता है। ऐसी कविताएँ जो भाव और विचारों की पूर्णता को प्रस्तुत कर सकें, उनकी प्रतिभा को और निखार सकती हैं।
कुल मिलाकर, डॉ. पूजा झा की कविताएँ भावनाओं, प्रकृति और जीवन के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण की झलक देती हैं। उनकी लेखनी में संभावनाएँ प्रचुर हैं, और यदि वे अपने काव्य को विस्तृत रूप दें, तो निश्चित रूप से वे हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान बना सकती हैं।
कवियत्री का परिचय:
डॉ. पूजा झा बीपीएससी (बिहार लोक सेवा आयोग) द्वारा योग्य पीजीटी (स्नातकोत्तर शिक्षक) हैं और उन्होंने विभिन्न शिक्षण पात्रता परीक्षाएँ उत्तीर्ण की हैं। वह बिहार सरकार के अधीन एक इंटरस्तरीय विद्यालय में कक्षा 11-12 के लिए एक विद्यालय अध्यापिका के रूप में कार्यरत हैं। उनके पास पहले एक आईसीएसई बोर्ड स्कूल में पढ़ाने का अनुभव है और उन्होंने बिहार सरकार के शिक्षा विभाग में भी सेवा की है। इसके अतिरिक्त, उनके पास आकाशवाणी भागलपुर (AIR) में 10 वर्षों का कंपेयर और आकस्मिक उद्घोषिका के रूप में अनुभव है। उनके शोध प्रबंध का विषय “संचार माध्यम और हिंदी की स्थिति” (Sanchar Madhyam aur Hindi Ki Sthiti), “संचार माध्यमों में हिंदी की स्थिति” है, जिसमें पारंपरिक संचार माध्यमों से लेकर आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यमों में हिंदी की स्थिति और भविष्य की संभावनाओं को शामिल किया गया है। इसमें “हिंग्लिश” के बढ़ते प्रभाव और डिजिटल मीडिया में हिंदी की संभावनाओं को दर्शाने का प्रयास किया गया है। उनकी रुचियों में लेखन कार्य, संगीत और पर्यटन शामिल हैं।
पुस्तक पर लेखिका के विचार:
डॉ. झा इस पुस्तक को अपनी “गीतों और कविताओं का संग्रह” बताती हैं। वह कहती हैं कि शब्दों के साथ के लगाव से मेरे मौन को आवाज़ मिली और जीवन को एक नई गति। प्रकृति, प्रेम, मौन, नैतिक मूल्य, सुख-दुख और आशा-निराशा के रंगों से बनी है मेरे शब्दों की रंगोली। जीवन के क्षणभंगुर क्षणों में रंग बिखेरती हुई। यह उनके लेखन के साथ उनके व्यक्तिगत सम्बन्ध और संग्रह में खोजे गए मुख्य विषयों पर प्रकाश डालती है।
डॉ. झा की कविता में कई प्रमुख विषयों और आवर्ती विचारों को प्रकट किया गया है।
प्रकृति और नई शुरूआत:
कई कविताएँ भोर, सूर्योदय, फूल, बादल और बदलती ऋतुओं की कल्पना पर केंद्रित हैं। ये प्राकृतिक तत्त्व अक्सर नई शुरूआत, आशा और जीवन के चक्रीय स्वरूप का प्रतीक होते हैं।
“नई सुबह, नई किरणें
नया फूल और नई कली
नया दिन, नई बातें–”
यह शुरूआती कविता ताज़गी और आशावाद का स्वर स्थापित करती है।
“सूर्य के रथ का आगमन
प्रकृति के प्रांगण में हो रहा
आलसी रात विदा ले रही
नवीनता का आलिंगन कर
आशाओं का उदय हो रहा।”
जीवन की कठिनाइयों और दुखों को स्वीकार करने के बावजूद, कविताओं में आशा और लचीलेपन की एक मज़बूत अंतर्धारा चलती है। कविताएँ प्रतिकूल परिस्थितियों में भी दृढ़ रहने और सकारात्मकता खोजने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
“मुसीबतों का क्या है?
यूँ ही आती रहेंगी
कभी मंज़िल गिराने को
कभी सफ़र की गति बढ़ाने को
सपने टूटते रहे
पर सफ़र बढ़ता रहा”
“उदास मन के ठूँठ पर भी
पनपेंगी नवीन कोंपलें
आशा के कुम्हलाए फूल पर भी
चमकेंगी सूरज की किरणें”
प्रेम और रिश्ते:
प्रेम, अपने विभिन्न रूपों में, एक महत्त्वपूर्ण विषय है। इसमें रोमांटिक प्रेम, अपने गाँव के साथ बंधन और मानवीय सम्बन्ध और सहानुभूति का महत्त्व शामिल है।
“अगर अब भी प्रेम शेष है
तो वह मेरे लिए विशेष है”
“आज भी मेरे साथ हैं
गाँव की गलियाँ
खेतों की पगडंडियाँ
आम के बग़ीचे
पहाड़ियों का रास्ता
मंदिर की घंटी
आँगन का चौपाल”
“चाहतें बेशुमार हैं
इस मतलबी दुनिया में
सबकी उम्मीदें बीमार हैं
इसलिए व्यथा और उलझनों को
चलो छिपा दें कहीं
मुस्कान बाँटें सभी को
आँसुओं को समेट लें अभी”
मौन और आंतरिक चिंतन:
शीर्षक ही “चुप्पी के चौखट पर शब्दों की रंगोली” (मौन के द्वार पर शब्दों की रंगोली) अभिव्यक्ति के लिए मौन की पृष्ठभूमि के रूप में महत्त्व का व्यक्त किया है। कई कविताएँ अनकही भावनाओं और आंतरिक चिंतन की शक्ति को स्पर्श करती हैं।
“रहने दो हमें मौन
संसार की भूलभुलैया में
शब्दों को भला समझे कौन?”
अव्यक्त मौन
कभी अश्रुपुरित नयनों का मौन
कभी जागृत स्वप्नों का मौन
कभी प्रेम की अभिव्यक्ति में मौन
कभी अंतर वेदना का मौन
मौन में पीड़ा है
तो आनंद भी
कोमलता की अनुभूति भी
और शक्ति का आभास भी”
जीवन और समय की क्षणभंगुर प्रकृति:
कविताएँ अक्सर समय, अवसरों और यहाँ तक कि भावनाओं की क्षणभंगुर प्रकृति पर विचार करती हैं, पाठकों से वर्तमान क्षण को सँजोने का आग्रह करती हैं।
“प्रतिपल प्रति क्षण होता रहता
लघु से लघुतर हमारा जीवन”
“रेत की तरह फिसलते समय को
रोक पाना मुश्किल।”
छोटी चीज़ों का महत्त्व:
कविता रोज़मर्रा की घटनाओं-ओस की बूँद, एक पक्षी की चहचहाहट, एक कोमल हवा-में सुंदरता और अर्थ पाती है, जो जीवन में छोटी ख़ुशियों की सराहना करने के महत्त्व पर प्रकाश डालती है।
“पुष्प पर ओस की बूँदें
मिलन के अश्रु जैसी हैं।”
“फूलों सी मुस्कान तुम्हारी
बसी है मन के मंदिर में
जब भी मन मुरझाता है
छवि तेरी तब दिखती है।”
अंतर्निहित सामाजिक टिप्पणी:
जबकि मुख्य रूप से व्यक्तिगत भावनाओं और विचारों पर केंद्रित है, कुछ कविताएँ सूक्ष्म रूप से सामाजिक वास्तविकताओं को छूती हैं, जैसे महिलाओं के संघर्ष।
“न जाने क्यों कमज़ोर होने का
भ्रम पालती ये औरतें?”
सामाजिक मानदंड और प्रगति का महत्त्व को भी व्यक्त किया गया है।
“हमारा समाज
ओछी मानसिकता के
चश्मे लगाकर
विकास की ख़बरों को
दिलचस्पी के साथ पढ़ता है”
शब्दों और कविता की शक्ति:
जैसा कि शीर्षक से पता चलता है और कवयित्री की टिप्पणी पुष्टि करती है, शब्दों के माध्यम से, विशेष रूप से कविता के माध्यम से ख़ुद को अभिव्यक्त करने का कार्य, आंतरिक भावनाओं को आवाज़ देने और जीवन में अर्थ खोजने के तरीक़े के रूप में देखा जाता है।
“कविता . . .
मेरे जीवन का एक कोना
जहाँ मेरा मौन, मेरी व्यथाएँ
विश्राम करती हैं।”
“जब शब्द नदी की तरह अविराम बहते हैं
तब कहीं एक सुंदर कविता का जन्म होता है”
सरल और भावनात्मक भाषा:
कविताओं में इस्तेमाल की गई भाषा आम तौर पर सुलभ है फिर भी ज्वलंत कल्पना बनाने और गहरी भावनाओं को व्यक्त करने में सक्षम है।
प्रकृति-आधारित रूपक और उपमाएँ:
भावनाओं और जीवन के अनुभवों का वर्णन करने के लिए प्राकृतिक तत्वों का बार-बार उपयोग शैली की एक प्रमुख विशेषता है।
“सपने तो नन्हे गौरैया की तरह
उड़ना चाहते हैं आसमान में”
“ओस की बूँद सा
यह जीवन
हर जगह जुड़ा हुआ
और हर जगह अलग-अलग।”
संवेदी विवरण पर ध्यान:
कविताएँ अक्सर इंद्रियों को संलग्न करती हैं, दृश्य (भोर के रंग, चाँदनी), ध्वनियाँ (पक्षी का चहचहाना, पत्तियों की सरसराहट) और भावनाएँ (सूर्य की गर्मी, बारिश की ठंडक) उत्पन्न करती हैं।
प्रत्यक्ष संबोधन और आत्मनिरीक्षण:
कुछ कविताएँ सीधे पाठक को संबोधित करती हैं या व्यक्तिगत आत्मनिरीक्षण में संलग्न होती हैं, जिससे अंतरंगता की भावना पैदा होती है।
पुनरावृत्ति और समानांतरता:
इन तकनीकों का उपयोग कभी-कभी ज़ोर देने और एक गीतात्मक प्रवाह बनाने के लिए किया जाता है।
संभावित दर्शक और महत्व:
विषयों और शैली के आधार पर, यह कविता संग्रह संभवतः उन पाठकों के साथ प्रतिध्वनित करने का लक्ष्य रखता है जो चिंतनशील और भावनात्मक रूप से गुंजायमान् छंदों की सराहना करते हैं। प्रकृति, प्रेम, आशा और आंतरिक दुनिया पर ध्यान केंद्रित करना हिंदी साहित्य में रुचि रखने वाले व्यापक दर्शकों से अपील करता है जो सार्वभौमिक मानवीय अनुभवों का पता लगाते हैं। एक शिक्षक के रूप में डॉ. झा की पृष्ठभूमि और समकालीन मीडिया में हिंदी भाषा में उनकी रुचि आधुनिक भारत के सांस्कृतिक और भाषाई परिदृश्य में रुचि रखने वालों के साथ संभावित सम्बन्ध का संकेत देती है।
जीवन की आपाधापी में कुछ क्षण निकालकर इस कविता संग्रह का कोई भी पन्ना खोलकर मन को ताज़ातरीन किया जा सकता है। सोशल मीडिया में पूर्व प्रकाशित रचनाओं को पुस्तक का रूप देना भी ज़रूरी था। जीवन के अनुभव, भावना का दस्तावेज़ीकरण आवश्यक था।
पूजा झा के इस प्रथम संग्रह की हार्दिक बधाई।
—विजय नगरकर
अहिल्यानगर, महाराष्ट्र
vpnagarkar@gmail.com
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