हिंदीतर गायकों का हिंदी भाषा में योगदान
आलेख | साहित्यिक आलेख विजय नगरकर1 Dec 2024 (अंक: 266, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
हिंदुस्तानी संगीत में हिंदी भाषा का महत्त्व अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हिंदी भाषा न केवल इस संगीत शैली की अभिव्यक्ति का माध्यम है, बल्कि यह उसकी आत्मा भी है। हिंदुस्तानी संगीत की विभिन्न शैलियों जैसे ध्रुपद, ख़्याल, ठुमरी, और भजन में हिंदी भाषा का व्यापक उपयोग होता है।
ध्रुपद, जो हिंदुस्तानी संगीत की सबसे पुरानी शैली मानी जाती है, में हिंदी के संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग होता है। यह शैली मंदिरों में गाई जाती थी और इसमें धार्मिक और दार्शनिक विषयों का समावेश होता था। ख़्याल, जो बाद में विकसित हुआ, में हिंदी के साथ-साथ उर्दू का भी प्रयोग होता है, जिससे यह शैली और भी समृद्ध हो गई।
ठुमरी और भजन जैसी शैलियों में हिंदी भाषा का प्रयोग भावनाओं और भावनात्मक अभिव्यक्तियों को प्रकट करने के लिए किया जाता है। ठुमरी में प्रेम, विरह, और भक्ति के भावों को हिंदी के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। भजन, जो भक्ति संगीत का एक प्रमुख रूप है, में हिंदी के सरल और प्रभावी शब्दों का प्रयोग होता है, जिससे श्रोताओं के हृदय में भक्ति की भावना जागृत होती है।
हिंदुस्तानी संगीत में हिंदी भाषा का महत्त्व इसलिए भी है क्योंकि यह संगीत की शिक्षा और प्रसार में सहायक होती है। हिंदी में लिखे गए संगीत के ग्रंथ और पुस्तकों के माध्यम से संगीत की शिक्षा को सरल और सुलभ बनाया गया है। इसके अलावा, हिंदी भाषा में संगीत के विभिन्न रागों, तालों, और बंदिशों का वर्णन किया गया है, जिससे संगीत के विद्यार्थियों को इसे समझने और सीखने में आसानी होती है।
हिंदुस्तानी संगीत में हिंदी भाषा का महत्त्व इस बात से भी स्पष्ट होता है कि यह भाषा संगीतकारों और गायकों के बीच संवाद का माध्यम है। हिंदी भाषा के माध्यम से संगीतकार अपने विचारों, भावनाओं, और रचनाओं को श्रोताओं तक पहुँचाते हैं। यह भाषा संगीत के माध्यम से एक सांस्कृतिक सेतु का काम करती है, जो विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों को जोड़ती है।
हिंदुस्तानी संगीत में हिंदी भाषा का महत्त्व अत्यधिक है। यह न केवल इस संगीत शैली की अभिव्यक्ति का माध्यम है, बल्कि यह उसकी आत्मा भी है। हिंदी भाषा के माध्यम से हिंदुस्तानी संगीत ने अपनी पहचान बनाई है और यह भाषा इस संगीत की धरोहर को सँजोए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
हिंदुस्तानी संगीत में हिंदीतर गायकों का योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा है। इन गायकों ने न केवल हिंदी भाषा में गाने गाए हैं, बल्कि उन्होंने हिंदी संगीत को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई है।
राजनीति के कारण दक्षिण भारत में हिंदी विरोध के स्वर कभी-कभी बजते हैं लेकिन हिंदी संगीत के स्वर अवश्य बार-बार गूँजते है।
हिंदी संगीत में हिंदीतर गायकों का योगदान
हिंदी सिनेमा और संगीत का इतिहास गौरवशाली रहा है, और इस गौरव गाथा में हिंदीतर गायकों का योगदान अतुलनीय है। विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों से आए इन कलाकारों ने अपनी प्रतिभा और समर्पण से हिंदी संगीत को समृद्ध बनाया है। उन्होंने न केवल अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है, बल्कि हिंदी गायन में नई शैलियों, तकनीकों और भावनाओं को भी पेश किया है।
प्रारंभिक दौर:
हिंदी सिनेमा के शुरूआती दौर में, जब पार्श्वगायन का चलन शुरू हुआ, तो कई बंगाली गायक जैसे के.सी. डे, पंकज मलिक और हेमंत कुमार ने अपनी आवाज़ दी। के.सी. डे की शास्त्रीय गायकी ने फ़िल्मों में गीतों को एक नया आयाम दिया, जबकि पंकज मलिक ने अपनी भावपूर्ण आवाज़ से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। हेमंत कुमार ने अपनी गहरी और मख़मली आवाज़ से हिंदी फ़िल्म संगीत में एक अलग पहचान बनाई।
स्वर्णिम युग:
हिंदी सिनेमा के स्वर्णिम युग में, दक्षिण भारत से आए गायकों ने अपनी अमिट छाप छोड़ी। लता मंगेशकर और आशा भोंसले जैसी महान गायिकाओं ने अपनी सुरीली आवाज़ से हिंदी सिनेमा को एक नई ऊँचाई दी। लता जी की आवाज़ में एक दिव्यता थी, जो हर गाने को अमर बना देती थी, जबकि आशा जी ने अपनी बहुमुखी प्रतिभा से हर तरह के गाने गाए, चाहे वह रोमांटिक हो, ग़ज़ल हो या फिर क्लासिकल।
पुरुष गायकों में, एस.पी. बालासुब्रमण्यम और के.जे. येसुदास ने अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा। एस.पी. बालासुब्रमण्यम ने अपनी ऊर्जावान और भावपूर्ण गायकी से कई सुपरहिट गाने दिए, जबकि के.जे. येसुदास ने अपनी शास्त्रीय गायकी और भक्ति गीतों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।
नए दौर के गायक:
आज के दौर में भी, हिंदीतर गायकों का योगदान जारी है। श्रेया घोषाल, सुनिधि चौहान, अरिजीत सिंह और के.एस. चित्रा जैसे गायक अपनी आवाज़ से हिंदी सिनेमा को समृद्ध कर रहे हैं। इन गायकों ने न केवल अपनी गायकी से, बल्कि अपनी विविध शैलियों और प्रयोगों से भी हिंदी संगीत को नया आयाम दिया है।
हिंदीतर गायकों के योगदान का प्रभाव:
हिंदीतर गायकों के योगदान ने हिंदी संगीत को कई तरह से प्रभावित किया है:
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विविधता: इन गायकों ने अपनी भाषाओं और संस्कृतियों से प्रभावित होकर हिंदी संगीत में विविधता लाई है।
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नई शैलियाँ: उन्होंने हिंदी संगीत में नई शैलियों और तकनीकों को पेश किया है।
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भावनात्मक गहराई: उन्होंने अपनी गायकी से गीतों में भावनात्मक गहराई को बढ़ाया है।
निष्कर्ष:
हिंदीतर गायकों का योगदान हिंदी संगीत के लिए अमूल्य है। उन्होंने अपनी प्रतिभा, समर्पण और रचनात्मकता से हिंदी संगीत को समृद्ध और जीवंत बनाया है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हिंदी संगीत आज जिस मुक़ाम पर है, उसमें इन गायकों का योगदान अहम है। भविष्य में भी, हमें उम्मीद है कि विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों से आए गायक हिंदी संगीत को नई ऊँचाइयों पर ले जाएँगे।
दक्षिण भारत के कई गायक और संगीतकार हैं जिन्होंने हिंदी भाषा में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। यहाँ कुछ प्रमुख नाम दिए गए हैं:
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एस.पी. बालसुब्रह्मण्यम: एस.पी. बालसुब्रह्मण्यम ने हिंदी फ़िल्मों में कई हिट गाने गाए हैं। उनकी आवाज़ ने हिंदी फ़िल्म संगीत को एक नई ऊँचाई दी है।
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हरिहरन: हरिहरन ने हिंदी फ़िल्मों में कई यादगार गाने गाए हैं। उनकी आवाज़ और गायकी की शैली ने उन्हें हिंदी संगीत में एक महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाया है।
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के.जे. यसुदास: के.जे. यसुदास ने हिंदी फ़िल्मों में भी अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है। उनकी गायकी में शास्त्रीय संगीत की गहराई और भावनात्मक अभिव्यक्ति की विशेषता है।
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एस. जानकी: एस. जानकी ने हिंदी फ़िल्मों में भी गाने गाए हैं और उनकी आवाज़ ने श्रोताओं के दिलों में एक विशेष स्थान बनाया है।
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के.एस. चित्रा: के.एस. चित्रा ने हिंदी फ़िल्मों में भी अपनी मधुर आवाज़ से कई हिट गाने गाए हैं। उन्हें ‘दक्षिण भारत की बुलबुल’ के नाम से भी जाना जाता है।
इन गायकों और संगीतकारों ने न केवल दक्षिण भारतीय संगीत में बल्कि हिंदी संगीत में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी गायकी और संगीत ने हिंदी भाषा को और भी समृद्ध किया है।
हिंदुस्तानी संगीत के क्षेत्र में दक्षिण भारतीय लोग भी हिंदी रचनाएँ सुनते हैं। हिंदी संगीत, विशेषकर फ़िल्मी संगीत और ग़ज़लें, पूरे भारत में लोकप्रिय हैं। दक्षिण भारत में, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम भाषाई क्षेत्रों के लोग भी हिंदी फ़िल्म संगीत का आनंद लेते हैं और इसे सराहते हैं।
इसके अलावा, कई दक्षिण भारतीय गायकों ने हिंदी फ़िल्म उद्योग में भी काम किया है और अपने गानों से एक व्यापक दर्शक वर्ग को प्रभावित किया है। जैसे कि एस.पी. बालासुब्रमण्यम, के.एस. चित्रा, और श्रेया घोषाल जैसे गायकों ने हिंदी फ़िल्मों में गाया है और उनके गीतों को पूरे देश में पसंद किया जाता है।
यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान भारतीय संगीत के समृद्ध और विविध स्वरूप को दर्शाता है, जहाँ भाषा की सीमाओं को पार करके संगीत का आनंद लिया जाता है। यह दिखाता है कि संगीत के माध्यम से विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के लोग एक दूसरे से जुड़ते हैं।
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