क्याप
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा विजय नगरकर1 Feb 2025 (अंक: 270, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
समीक्षित पुस्तक: क्याप (उपन्यास)
लेखक: मनोहर श्याम जोशी
प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
संस्करण: चौथा प्रकाशन वर्ष 2021
मूल्य: ₹395.00 (हार्ड कवर), ₹250.00 (पेपरबैक)
पृष्ठ: 152
ISBN: 9788170557999
वाणी प्रकाशन लिंक: क्याप
अमाज़ॉन इंडिया लिंक: क्याप
“पूँजीवादी उद्योगपति की कंपनी का समाजवादी विज्ञापन टीवी पर देखकर मनोरंजन हुआ। वोल्टास एसी मशीन के विज्ञापन में खेत मज़दूर की छोटी लड़की मालिक के बँगले में ख़ाली डब्बा लेकर जाती है। एसी की खिड़की के सामने डब्बा खोलकर वह ठंडी हवा पकड़ती है। फिर वह ठंडी हवा खेत में काम करने वाले अपने पिता के चेहरे पर छोड़ देती है। विज्ञापन कलात्मक है, कल्पना अच्छी है। लेकिन मज़दूर के पास एसी मशीन ख़रीदने की क्षमता कहाँ से आएगी? यह ग़रीबों की जानलेवा ठट्ठा है।”
“वैश्विक पूँजीवाद के विशाल चक्र के नीचे समाजवादी कम्युनिस्ट आंदोलन नष्ट होने के कगार पर है। सोवियत संघ का विघटन, माओवादी चीनी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाली पूँजीवादी अमेरिकी कंपनियों ने कम्युनिस्ट विचारधारा को बड़ा झटका दिया है। मज़दूर आंदोलनों में शामिल स्वार्थी राजनीतिक नेतृत्व ने अचार संहिता की धज्जियाँ उड़ा दी हैं। ग़रीब किसान और मज़दूरों के हितों की बात सभाओं में करनी है, लेकिन सत्ता में आने पर परिवार और रिश्तेदारों के लिए ज़मीन और कारख़ानों का आर्थिक शोषण करना है।”
यह सब याद करने का कारण है स्वर्गीय मनोहर श्याम जोशी की साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त उपन्यास ‘क्याप’। इस प्रतिष्ठित हिंदी लेखक ने प्रेस, रेडियो, टीवी, डॉक्यूमेंट्री, समाचार पत्र, मासिक पत्रिकाओं सभी क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा की छाप छोड़ी है। केंद्रीय सूचना सेवा, टाइम्स ऑफ़ इंडिया, साप्ताहिक हिंदुस्तान आदि मीडिया में काम करते हुए, उन्होंने 1984 में टीवी सीरियल ‘हम लोग’ लिखने के लिए संपादक की कुर्सी छोड़ दी। मनोहर श्याम जोशी का जन्म 9 अगस्त 1933 को अजमेर में हुआ था। उनकी शिक्षा अजमेर और लखनऊ में हुई। विज्ञान में स्नातक होने के बावजूद साहित्य के प्रति लगाव के कारण वह लेखक बने। अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों भाषाओं में उनकी पकड़ के कारण हिंदी साप्ताहिक 'हिंदुस्तान' के साथ-साथ अंग्रेज़ी साप्ताहिक ‘वीक एंड रिव्यू’, ‘मॉर्निंग एअर’ का संपादन उन्होंने प्रभावी ढंग से किया। टेलीविज़न सीरियल्स के जनक मनोहर श्याम जोशी ने ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’, ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’, ‘ज़मीन-आसमान’ इत्यादि सीरियल्स लिखकर मध्य वर्गीय दुखों और संवेदनाओं को शब्दों में प्रभावी रूप से प्रस्तुत किया।
‘क्याप’ उपन्यास एक ऐसे साधारण व्यक्ति की कहानी है जो हिमालय के वाल्मीकी नगर ज़िले के अछूत डूम जाति से है और कम्युनिस्ट आंदोलन की ओर आकर्षित होता है।
कस्तुरीकोट नामक काल्पनिक राज्य में यह उत्तराखंड का क्षेत्र है। उन्होंने आधुनिकता के नाम पर मीडिया द्वारा फैलाए गए छल का मज़ाक़ उड़ाया है। टीवी और अख़बारों में छपी ख़बरों से आज की नई पीढ़ी का विकास हो रहा है। इसके लिए लेखक ने “हमारे उपवन में यहाँ से वहाँ तक भूल के ही फूल खिले है” जैसी सुंदर छवि रची है। ‘क्याप’ गढ़वाली शब्द को स्पष्ट करने के लिए लेखक ने अजीब-सा, अनघड़-सा, बेकार-सा, अनदेखा-सा, निराशाजनक जैसे शब्दों का प्रयोग किया है।
‘क्याप’ एक डूम हरिजन प्रेमी और उत्तरा नाम की ब्राह्मण लड़की की विफल प्रेम कहानी है।
कम्युनिस्ट क्रांति के सपने देखने वाला डूम समाज के ढोंगीपन से निराश है। उपन्यास का नायक कहता है कि क्रांति लिखो, क्रांति बोलो, क्रांति का भजन करो पर क्रांति मत करो। वह कहता है कि कम्युनिस्ट नेता और ग़रीब जनता के बीच की खाई बढ़ रही है। कम्युनिस्टों को ग़रीबों के बीच रहकर ग़रीबों की तरह रहना चाहिए। ग़रीबों के दुख को समझने वाले नेता चाहिए। मैं एक बुद्धिजीवी वामपंथी नेता हूँ, लेकिन मुझे हमेशा ऐसा लगता है कि हम वामपंथी लोग कॉफ़ी हाउस में सिगरेट पीते हुए अंग्रेज़ी पत्रिकाओं में छपे लेख और कम्युनिस्ट ग्रंथों के उदाहरण देने में माहिर हो गए हैं। हम और ब्राह्मणों में क्या अंतर बचा है? ब्राह्मण भी धर्म ग्रंथों के संस्कृत श्लोक रटकर शास्त्रार्थ करते हैं। हम वामपंथी नेता भी मुफ़्त की मिठाइयाँ खाकर पेट बढ़ा रहे हैं।
लेखक स्वयं पत्रकार होने के कारण उपन्यास लिखते समय सामाजिक और राजनीतिक स्थिति का पूरा ध्यान रखा है।
स्वतंत्रता पूर्व काल में महात्मा गाँधी का जनसामान्य पर प्रभाव उन्होंने बारीक़ी से नोट किया है। कार्ल मार्क्स ने सभी कष्टकर किसानों और मज़दूरों के हितों की बात रखी है, लेकिन भारतीय जनता को धोती पहने नंगे पैर चलने वाला महात्मा ज़्यादा प्रिय लगता है। ग्रामीण जनता को वह अपना मित्र लगता है। कार्ल मार्क्स भारतीय मिट्टी में ज़्यादा नहीं जम पाया। कम्युनिस्ट विचारों को भारतीय समाज की मानसिकता को समझा नहीं पाए। कम्युनिस्ट विचारों को भारतीय परिधान नहीं दिया गया। विचार तो श्रेष्ठ होते हैं, लेकिन उन्हें अमल में लाने के लिए यहाँ की मिट्टी में बीज बोना पड़ता है।
लेखक ने उपन्यास के नायक के चाचा खीमराज के ‘कम्युनिस्ट कार्यकर्ता चरित्र’ का वर्णन किया है।
उनकी सादगी, कष्टकर जनता के साथ समरस होना और पहाड़ी क्षेत्र में कार्ल मार्क्स के विचारों का प्रचार करने का सुंदर चित्रण किया है। खीमराज चाचा पर अल्मोड़ा के कॉमरेड पूरन चंद्र जोशी, लेनिन, स्टालिन और कार्ल मार्क्स के विचारों का प्रभाव है।
यह पूरा उपन्यास मनोहर श्याम जोशी ने कहानियों के रूप में लिखा है।
कस्तुरीकोट के काल्पनिक उत्तराखंड में पहाड़ी लोगों के जीवन में कहानियों का विशेष महत्त्व है। लेखक कहते हैं कि इन कहानियों की आदत के कारण यहाँ के लोग विषम परिस्थितियों में भी जीवन को सुखकर बनाने की कोशिश करते हैं।
इस उपन्यास को 2006 में साहित्य अकादमी का हिंदी में उत्कृष्ट साहित्य का पुरस्कार मिला।
हिंदी साहित्य की सेवा करने वाले इस महान लेखक का निधन 30 मार्च, 2006 को हुआ।
उनके जाने के बाद हिंदी पाठक उनकी ही भाषा में कहते हैं कि सब कुछ क्याप लग रहा है।
विजय नगरकर
अहिल्यानगर, महाराष्ट्र
vpnagarkar@gmail.com
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