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रमक-झूले की पेंग नन्हा बचपन

नन्हा बचपन 40

 

विशाखा के यहाँ करुणा की उपस्थिति कम होने पर वो लोग विचार करने लगे थे कि जाने क्यों नहीं आ रही है अभी? जो उनके दिनचर्या का एक अभिन्न अंग बन चुकी थी।

माहौल और तबीयत ठीक होने पर थोड़ी सी आज़ादी तो मिली, पर करुणा पर थोड़ी सख़्ती भी बढ़ी थी।

मंजेश्वरम के जन-जीवन में शिक्षित समाज का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता था। सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध मुफ़्त की गर्भनिरोधक संसाधनों के प्रयोग से आस-पास के प्रत्येक हिन्दू युवा परिवार में एक लड़की या दो लड़कियाँ मात्र रहने के बावजूद संतुष्ट रहते। जिनमें छह से ज़्यादा वर्ष का अंतर साफ़ पता चलता।

कई घरों के अंतराल पर किसी एक घर में लड़का बच्चा रूप में दिखाई देता।

देखभाल और पालन-पोषण पर होने वाले ख़र्च आदमियों की तुलना में अनुशासित बेहतरीन व्यवस्था के साथ प्रत्येक घर में बच्चों की संख्या कम थी पर कुत्ते और बिल्लियों की भरमार थी।

विंशी की पत्नी जब भी मछली साफ़ करने बैठती उनके आस-पास दस-पन्द्रह छोटी-बड़ी बिल्लियाँ अनुशासित बड़ी धैर्य-पूर्वक अपनी-अपनी बारी आने की प्रतीक्षा करतीं। जिसे देख-समझ कर रागिनी हतप्रभ रह जाती। सचमुच घर के आस-पास बहुत बिल्लियाँ रहती थीं। उन कुत्तों और बिल्लियों के कारण साँपों के आने पर सांकेतिक सूचना उपलब्ध हो जाती। उनकी आवाज़ें सुनकर लोग चौकन्ने हो जाते। तब रागिनी भी करुणा को लेकर घर में आ जाती।

गृह स्वामी विंशी की दो लड़कियाँ थी ‘सीमा-नीमा’ जिनसे पाठक पहले ही परिचित हैं कि वो दोनों बहनें भी छह वर्ष के अंतराल में उत्पन्न थी। पर बेटे की चाहत में तीसरी संतान की आख़िरी कोशिश में उनकी पत्नी पुनः गर्भधारण किया था। जिसपर रागिनी के सामने, विशाखा की माँ की प्रतिक्रिया हुई थी, “बड़ी बहन होने के नाते, दिवंगत माँ और अपने छोटे भाई का मुँह देख कर दो बेटियों का तो मैं पालन-पोषण कर रही थी। तुम तो सब देख-समझ रही हो . . . पर इनको तो कुछ समझना नहीं है . . . और इस पर ज़बरदस्ती . . . अब ये अगला बच्चा! . . . आज के औक़ात और सामर्थ्य के अनुसार मेरे भाई ने कितना समझाया था कि दो बेटियाँ ही बहुत हैं। जाने कौन-सा राजवंश है जो इनको तो नाम और वंश चलाने के लिए बेटा चाहिए . . . तो चाहिए।”

पहले से ही गोल-मटोल महिला! गर्भावस्था में और भी पेट निकल आया है। बहुत कुछ अपनी उम्र और अवस्था से भी कहीं ज़्यादा, मात्र छह वर्षीय बेटी नीमा, जिसे देख-समझ रही थी।

आपस में खेलते हुए बच्चों के बातचीत में ज़ाहिर होता है कि वह बहुत कम उम्र में ही टीवी पर उपलब्ध कार्यक्रमों के माध्यम से बहुत कुछ जानते हैं। जिन्हें जानने-समझने में पिछली पीढ़ी को बहुत समय लग जाता था।

सीमा-नीमा, अक्षता-अक्षिता सगी बहनें होने के कारण अपने-अपने घरों में साथ रहतीं पर अक़्सर करुणा अकेली पड़ जाती थी। बहनों के खेल में शामिल होने जाने पर जब स्वीकार कर ली जाती तब तो कोई बात नहीं थी। पर मूड या बचपना चाहे किसी भी कारण से कभी-कभी अस्वीकार भी कर दी जाती।

तब अश्रुपूरित करुणा, रागिनी की गोद में बैठ कर अपने लिए कोई भाई या बहन की माँग कर बैठती, “माँ, मैं किसके साथ खेलूँगी? मुझे भी भाई-बहन दो . . . वो गंदी है . . . मुझे नहीं खेलाई . . .। कहाँ से मिलेगा बाबू? . . . चलो ना लाने। तुम भी लाओ ना। गंदी दीदी लोग से फिर मैं कभ्भी भी नहीं बात करूँगी।”

कई बार किसी के नन्हे बच्चे को देखकर कहती, “माँ लो इसे गोदी में . . . इसे अपना दूधू पिलाओ ना . . .। हमारे पास रहेगा ये। . . . मत जाने दो इसे!”

किसी भी नन्हे बच्चे के लिए अपनत्वपूर्ण संवेदनशीलता जताती हुई; आहत, भावनात्मक संवेदनशीलता में जाने क्या से क्या नन्ही बच्ची रोती हुई बोल जाती। तब अपने उस अजन्मे बच्चे को राजीव की ज़िद की वजह से खोने का रागिनी को बहुत अफ़सोस होता।

करुणा को ढाढ़स बँधाते हुए रागिनी ने वादा किया, “ठीक है तुम्हारा बाबू भी आएगा!”

“कब आएगा? कहाँ से आएगा?” जैसे अनन्त सवालों की झड़ी लगा दी। उन सवालों से बचने के लिए अपने बचपन में सुनी हुई कहानी दुहराती हुई कह दिया, “ठीक है हॉस्पिटल से ला दूँगी।”

बहुत संतुष्ट होकर अपनी उस मंडली में जाकर अपने आने वाले बाबू का झट से शुभ समाचार भी दे आई, “तुम लोग मुझे नहीं खेलाती हो ना? . . . मेरी माँ, मेरे लिए . . . जल्दी ही बाबू लाएगी . . . तुम्हारी माँ जैसी . . . पर तुम्हारे बाबू से भी सुन्दर! . . . सबसे अच्छा! देखना तब मैं तुम लोगों के साथ बिलकुल नहीं खेलूँगी।”

“ठीक है मत खेलना! . . . पहले बाबू तो ले आओ! इतनी जल्दी बाबू थोड़े न आता है?” . . . नीमा के कहने पर अक्षता-अक्षिता भी ज़ोरों से हँस पड़ीं।

हँसकर मज़ाक़ उड़ाते देखकर करुणा ने और भी स्पष्ट किया, हाँ, सचमुच मेरी माँ भी बाबू लाएगी। हॉस्पिटल से ख़रीद कर लाएगी।

सुनकर अपना सिर ठोकते हुए, “अरे स्टूपिड! . . . बच्चा, हॉस्पिटल से ख़रीद कर नहीं; मम्मा के स्टमक (पेट) से आता है,” नीमा ने स्पष्ट किया।

उसने हाल में ही टीवी पर किसी कार्यक्रम या फ़िल्म में देखा है कि बेबी, मम्मा के स्टमक में रहता है। वो हॉस्पिटल से ख़रीद कर नहीं आता है। जिसे वह छह साल की बच्ची, ढ़ाई साल की करुणा को समझा रही थी और सुनकर रागिनी और विशाखा उस बौद्धिक क्षमता पर हतप्रभ थी पर मौन रहकर परख रही थीं।

रागिनी के लिए मनोरंजन के बहाने से बड़ी-सा रंगीन टीवी जो राजीव ने ख़रीदा था; शीघ्र ट्रांसफ़र होने की सम्भावना या आशंकाओं की वजह से अपने किसी मित्र के पास सुरक्षागत दृष्टि से रख दिया था। ये बात जानकर एक शरारती सहकर्मी मित्र ने एक दिन फोन करके कहा, “आपका टीवी तो साफ़-सफ़ाई में छज्जे से गिरने के कारण गिर कर टूट गया है . . . पर वह आपसे संकोच और भयवश कुछ कह नहीं पा रहे हैं।”

अब सुनकर तो राजीव फ़िक्रमंद हो गया। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे? . . . रागिनी से जाकर कहेगा तो वह तो नाराज़ हो कर झगड़ बैठेगी। जाने क्या कुछ कहेगी? . . . पूरे एक महीने की वेतन से ज़्यादा की क़ीमत लगाई थी। ताकि मध्यवर्गीय परिवार रूप में सबसे सहज-सुलभ मनोरंजन कर सकें। पर ये क्या हो गया भगवान? बहुत चिंतित! . . . कुछ कह भी नहीं रहा था पर बिना कहे रहा भी नहीं जा रहा था।

राजीव का मानसिक विचलन रागिनी, अनुभव कर रही थी। पर ड्यूटी में कुछ उन्नीस-बीस हुआ होगा सोच कर मौन रहती। अन्ततः जब बरदाश्त नहीं हुआ तो राजीव ने रागिनी से पूछा, “एक बात कहूँ तुम नाराज़ तो नहीं होगी?”

हँसते हुए बोली, “आप भी विचित्र हैं . . . मेरी नाराज़गी की सोच कर आप कुछ कहेंगे . . . या नहीं कहेंगे? ये तो ग़लत बात हुई . . . पहले आप कह तो दीजिए उसके बाद मुझे निर्णय की आज़ादी दीजिए कि ग़ुस्सा करूँगी भी या नहीं?”

गहन-गंभीर रूप में राजीव ने कहा, “देखो ना . . . (उस व्यक्ति विशेष का नाम लेकर) वह फोन किया था। बातों-बातों में बोला कि हमारा टीवी जो ट्रांसफ़र की सुविधा के लिए नहीं लाया था मैं, साफ़ सफ़ाई में किसी वजह से गिर कर टूट गया है। जिनके यहाँ रखा था संकोचवश वह फोन करके कुछ नहीं कह रहे हैं।”

ध्यानपूर्वक सुनने के बाद रागिनी ने कहा, “आप भी किस झूठे की बातों में आकर परेशान हो रहे हैं? वो तो इस प्रकार की शरारतें अक़्सर करता रहता है। मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ भी हुआ होगा . . . आप निश्चिंत रहिए। उस झूठे की तुलना में जिनके यहाँ आप रखें हैं वो ज़्यादा विश्वसनीय है। यदि भूलवश यदि ऐसा हुआ भी होगा तो क्या किया जा सकता है? वो जान-बूझकर तो तोड़ेंगे नहीं। आप परेशान मत होइए।” रागिनी ने मज़ाक़िया लहजे में तुलनात्मक समीक्षा व्यक्त की।

रागिनी के आश्वासन पर राजीव बहुत कुछ हल्कापन अनुभव कर रहा था। इस क्षति के लिए अब ख़ुद को पूरी तरह तैयार कर लिया था। ”मेरी परीक्षा है कुछ दिनों में जाना ही है जाकर मिल कर, देख लूँगा।”

नौकरी मिलने के बावजूद अभी भी असंतुष्ट, कुछ और बेहतर पद-प्रतिष्ठा की तलाश में तैयारियाँ कर रहा था। उसका कारण भी कुछ अलग-सा है। जो कि ऐसा है कि राजीव की नौकरी जिस पद पर कार्यरत रूप में हुई थी नई छठे वेतन आयोग के कारण 5500 सौ के वेतनमान को 4500-4800 ₹ के वेतनमान के बराबरी में कर दिया गया था। जिसे अब तक के दुस्साध्य परिश्रम करके पहुँचा महत्त्वाकांक्षी राजीव स्वीकार नहीं कर पा रहा था।

“अपने इस महत्त्वाकांक्षा के नाम पर जाने कितना ख़ून-पसीना बहा कर यहाँ तक पहुँचा था। इसके लिए छह महीने की ट्रेनिंग के बदले में, दो साल की ट्रेनिंग करनी पड़ी थी। एक मोटी रक़म के एरियर भुगतान से वंचित होना पड़ा। ज़िंदगी के क़ीमती समय और संसाधनों को लगाया। इसके बदले में मिला क्या? . . . उन्नति के बदले में अवनति? दुनिया आगे बढ़ती है पर मेरी क़िस्मत देखो मुझे डिमोशन मिली, रागिनी! जिस वेतनमान को नकारते हुए इतना पापड़ बेलना पड़ा। अन्ततः उसी पद पर उठा कर पटक दिया गया मैं!” राजीव हताशा में निराश, ठगा सा अनुभव कर रहा था।

“जिस शिक्षक के पद पर मैं ख़ुद को असहज स्थिति में पाता था, वह पद दो वेतनमान बढ़ा कर सम्मानित स्थिति में पहुँच गया है। अब मैं इस नौकरी पर नहीं रहना चाहता। मेरी बी.एड. डिग्री आख़िर किस दिन काम आएगी? अब मुझे शिक्षक बनना है। जब तक की वैधानिक उम्र है मेरी, एक और संघर्ष क़दम पर आगे बढ़ना है।”

“हाँ, बिलकुल सही कहा आपने!” रागिनी के समर्थन पर राजीव का एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया था।

पुस्तक की विषय सूची

  1. नन्हा बचपन 1
  2. नन्हा बचपन 2
  3. नन्हा बचपन 3
  4. नन्हा बचपन 4
  5. नन्हा बचपन  5
  6. नन्हा बचपन  6
  7. नन्हा बचपन 7
  8. नन्हा बचपन 8
  9. नन्हा बचपन 9
  10. नन्हा बचपन 10
  11. नन्हा बचपन 11
  12. नन्हा बचपन 12
  13. नन्हा बचपन 13
  14. नन्हा बचपन 14
  15. नन्हा बचपन 15
  16. नन्हा बचपन 16
  17. नन्हा बचपन 17
  18. नन्हा बचपन 18
  19. नन्हा बचपन 19
  20. नन्हा बचपन 20
  21. नन्हा बचपन 21
  22. नन्हा बचपन 22
  23. नन्हा बचपन 23
  24. नन्हा बचपन 24
  25. नन्हा बचपन 25
  26. नन्हा बचपन 26
  27. नन्हा बचपन 27
  28. नन्हा बचपन 28
  29. नन्हा बचपन 29
  30. नन्हा बचपन 30
  31. नन्हा बचपन 31
  32. नन्हा बचपन 32
  33. नन्हा बचपन 33
  34. नन्हा बचपन 34
  35. नन्हा बचपन 35
  36. नन्हा बचपन 36
  37. नन्हा बचपन 37
  38. नन्हा बचपन 38
  39. नन्हा बचपन 39
  40. नन्हा बचपन 40
  41. नन्हा बचपन 41
  42. नन्हा बचपन 42
  43. नन्हा बचपन 43
  44. नन्हा बचपन 44
  45. नन्हा बचपन 45
  46. नन्हा बचपन 46
  47. नन्हा बचपन 47
  48. नन्हा बचपन 48
  49. नन्हा बचपन 49
  50. नन्हा बचपन 50
क्रमशः

लेखक की पुस्तकें

  1. रमक-झूले की पेंग नन्हा बचपन

लेखक की अन्य कृतियाँ

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