अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

निम्न चाप

भा‌षा, मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण माध्यम है। जिसमें क्षेत्रीय आधार पर अर्थ और उच्चारणगत बहुत से परिवर्तन होते रहते हैं, जो कभी-कभी हास्यास्पद भी बन जाता है। चलिए आज इसी उच्चारणगत समस्या पर एक चर्चा करती हूँ। 

दीवाली से पहले पूरे भारत में निम्न दबाव का क्षेत्र बनने से वर्षा का प्रभाव व्याप्त था। मेरी सहेली के पति, जन्मजात भोजपुरिया जन्तु, बंगाल में रहते हुए बांगाली भाषा एवं सभ्यता-संस्कृति के रंग में रँगे हुए हैं, बन्धु। 

घरेलू हाल-समाचार कहने-सुनने के बाद मौसम पर बात चली तो, वर्षा रानी के कारण अस्त-व्यस्त जन-जीवन की बात चली। वह मुझे बताने लगे कि बांग्ला में इस तरह के प्रभाव को निम्मो चा कहते हैं। 

यूँ ही लापरवाही में मुझे लगा कि संभवतः बांग्ला में कहते होंगे, निम्मो चा। अकस्मात् दिमाग़ में आया, "निम्मो चा . . .? हिन्दी का नीबू चाय? अरे यार इससे भी कुछ बेहतर शब्द हो सकते हैं जी? निम्मो चा . . . । ये क्या बात हुई निम्मो चा . . .?" अर्थ स्पष्ट करने के लिए पूछा मैंने, "और कुछ अच्छा शब्द बांग्ला में नहीं है इस तरह के मौसम के लिए?"

हँसते हुए मज़ाकिया रिश्ते की वजह से टाँग खिंचाई करती हुई पूछती रही और वह मुझे स्पष्ट करने के लिए बार-बार 'निम्मो चा' कहते रहे। 

विविध अर्थों पर तर्क-वितर्क करते हुए पाँच-सात बार कहने-सुनने के बाद पता चला कि वह निम्न दबाव के संदर्भ में प्रयोग कर रहे थे। 

हुआ यूँ कि जैसे ही मैं बोली कि हिंदी में निम्न दबाव का क्षेत्र कहा जाता है तो सुनकर झट से बोले, "हाँ, यही निम्न दबाव को बांग्ला में निम्न चाप कहा जाता है।" 

'निम्न चाप' शब्द का आख़िरी कुछ शब्दांश और भाव, गुप्त-अप्रकट रह जाने से बंगाली टोन में जो निम्मो चा . . . । निम्मो चा . . . पर अटका था, केवल सुन और समझ पा रही थी। 

समझने के बाद हँसते-हँसते लोट-पोट हो कर रह गई—"अरे यार अच्छा है तुम्हारा निम्मो चा!” के साथ हमारा संवाद समाप्त हुआ। 

अब तो कभी भी बात होने पर, "बंगाल के निम्मो चा का क्या हाल-चाल है?" हँसकर पूछ्ना नहीं भूलती। प्रतिक्रिया स्वरूप वह भी ठठाकर हँस पड़ते हैं। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

अति विनम्रता
|

दशकों पुरानी बात है। उन दिनों हम सरोजिनी…

अनचाही बेटी
|

दो वर्ष पूरा होने में अभी तिरपन दिन अथवा…

अनोखा विवाह
|

नीरजा और महेश चंद्र द्विवेदी की सगाई की…

अनोखे और मज़ेदार संस्मरण
|

यदि हम आँख-कान खोल के रखें, तो पायेंगे कि…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

व्यक्ति चित्र

कविता

लघुकथा

कहानी

बच्चों के मुख से

स्मृति लेख

सांस्कृतिक कथा

चिन्तन

सांस्कृतिक आलेख

सामाजिक आलेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं

लेखक की पुस्तकें

  1. रमक-झूले की पेंग नन्हा बचपन