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कृपा कर आज

 

आधार छंद: त्रिपर्णिका वार्णिक दण्डक
गणावली: न+ 8 जगण
अंकावली: 111-121-121-121-121-121-121-121-121
सृजन शब्द: कृपा कर आज

  
कब-तक मूर्ख बनें किस कारण जो दुनिया सब लूट रही बन बाज। 
भगवन मैं शरणागत आन पड़ी भव से अब पार कृपा कर आज॥
नव-पथ देकर मुक्त करो पथ कंटक दूर करो सबके महराज। 
जब सहमें-सहमें दिखता ख़तरा सबको कब-कौन बचा यमराज॥
 
भव-भय बंधन काट सके सबकी निजता तन का मन का हर लाज। 
जब तुम हो संग सखा बन धारण-तारणहार हुआ सब काज॥
जय-जय बोल करें जयकार यहांँ रखना अपने-अपने सिरताज। 
सच-मुच कौन बता सकता कितना सच कथनी-करनी अब राज॥
बचपन भूल गया हँसना समझा न सका टुकड़ों बंँट मौन समाज। 
दरपन टूट रहा क्षण जीवन है मरता छिलता परतों दर प्याज॥

अनहद प्यास जगी कितनी जब टूट पड़े बिलखें दम भूख अनाज। 
यह जग सार लिए ममता मय प्रेम जगे करतार कृपा पर नाज॥
कब-तक मूर्ख बनें किस कारण जो दुनिया सब लूट रही बन बाज। 
भगवन मैं शरणागत आन पड़ी भव से अब पार कृपा कर आज॥

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