आगे बढ़िए छोड़ अतीत
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत पाण्डेय सरिता ‘राजेश्वरी’15 Aug 2025 (अंक: 282, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
आधार छंद: आल्हा/वीर छंद
विधा: गीत
परिचय: (31 मात्रा) सममात्रिक छंद
पदांत: (21) आवश्यक
यति: 16, 15
सृजन शीर्षक: आगे बढ़िए छोड़ अतीत।
मुश्किल है ये जीवन सारा, कंटक राहें विघ्न प्रतीत।
बाधाओं के पार चलो जी, आगे बढ़िए छोड़ अतीत॥
व्यर्थ नहीं है जाने देना, अब तक सारा काल व्यतीत।
साध चुनौती लक्ष्य मिलेगा, पूर्ण सफलता है निर्णीत॥
देख तुम्हारे संघर्षों की, गाथा गूँजे लोकातीत।
प्रस्तर पर लहरें भी नाचीं, अमर कहानी बन संगीत॥
साहस फैले ध्वजा बुलंदी, क्या जाने होना भयभीत।
होश रखे सँभाले हैं वो, लाख परिस्थितियाँ विपरीत॥
काट शीश हाथों में रखते, जीते सदा मृत्यु परिणीत।
जगदंबा मातु-भवानी से, महाकाल रूप मनोनीत॥
तन के अंदर प्रस्तर रहता, कोमल हिय में मथ नवनीत।
इनके बल पर धरा/देश सुरक्षित, परिभाषित है राष्ट्र पुनीत॥
नतमस्तक हो सौंपा जीवन, बूँद-बूँद संचार विनीत।
ख़ाली हाथ गई है दुनियाँ, पर ये जाते हैं जग जीत॥
मुश्किल है ये जीवन सारा, कंटक राहें विघ्न प्रतीत।
बाधाओं के पार चलो जी, आगे बढ़िए छोड़ अतीत॥
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