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रात के तीन बजे

हज़ारीबाग़ (सरिया) से आठ किलोमीटर दूर बराकर नदी है। जहाँ से दिन भर बालू निकालने के लिए ट्रैक्टर्स की क़तार लगी रहती है। 

भारत में साल 2020 का मार्च का आख़िरी सप्ताह कोरोनावायरस के कारण प्रधानमंत्री मोदी के होम लॉक डाउन की ख़बर के बीच में, ऐसी गहन रात्रि में लोगों के बार-बार के शोरगुल और ट्रैक्टर ट्रालियों की लगातार विचित्र खड़खड़ाहट ने गहरी नींद में बाधा डाली। मुख्य सड़क पर रेलवे क्रासिंग फाटक से पचास मीटर दूर, घर होने के बावजूद भी रात की शान्ति भंग करते हुए सड़क से ज़्यादा दिमाग़ गुंजायमान्‌ हो उठा था। 

सारी दुनिया के लिए रात्रि विश्राम का समय है, और ऐसे में हद है मानवीय प्रवृत्तियों के बेचैनी की। 

बर्दाश्त के बाहर होने पर बालकनी में खड़ा हो कर देखने पर पता चला कि कुछ देर में रेलवे फाटक बन्द होने से रोकने के लिए रेत ढुलाई और लोगों के भागदौड़ के परिणामस्वरूप बसों में ठूँसे हुए लोगों का सांकेतिक शोर था वह। 

मैं सोचने लगी—"जहाँ पूरी दुनिया में लोगों के होश उड़े हुए हैं, प्राणों के संकट पड़े हैं, ऐसे में बालू और घर बनाने की आग किसे लगी पड़ी है भला? धन्य है लोगों के अति आत्मविश्वास का। अनिश्चितकालीन तालेबंदी और कोरोनावायरस की भयंकरता के प्रति, जान-ज़िंदगी के लिए जहाँ पूरी दुनिया में, जो जहाँ हैं, वहीं परेशान हैं। ऐसे में सामाजिक-राजनीतिक विसंगतियों के समय में शासन-प्रशासन और लोगों की जान-ज़िंदगी से खिलवाड़ करते हुए इन ट्रैक्टर ट्रालियों के ज़रिए रात में उफ़्फ़ ये नदी लूटने का अनधिकृत प्रयास?"

बहुत देर तक यूँ ही सुनती और देखती रहने के बाद मन की बेचैनियों के बीच कमरे के अँधेरे में मोबाइल में समय देखने पर पता चला कि रात के तीन बजने वाले हैं। 

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