मरो . . .! श्रद्धा मरो . . .!
काव्य साहित्य | कविता पाण्डेय सरिता1 Dec 2022 (अंक: 218, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
तुम अपनी,
‘मेरा जीवन मेरी व्यस्क
आज़ादी’ के नाम पर
(लिव-इन-रिलेशन शिप)
बंधन मुक्त रिश्ते में,
रहने के लिए
आभासी दुनिया से मिले
साथी के लिए
पूरी दुनिया से संपर्क
काट कर . . . मरो।
मरो . . . श्रद्धा मरो . . .।
मेरा अफ़ताब ऐसा नहीं है—
मान, ढ़िंढोरा पीटने के बाद,
पिट-पिट कर मरो।
मरो . . .! श्रद्धा मरो . . .!
नपुंसकता के ढाँचे पर खड़ा,
संविधान और प्रशासन,
देश और समाज की
बेरहमी पर मरो।
तन-मन-प्राण आत्मा वाला शरीर नहीं;
प्लेट में पड़े मज़े के लिए पड़े,
शराब-माँस व्यापार के लिए मरो।
ताकि देह व्यापार और
अंग तस्करी चलती रहे।
धर्मांतरण-लव जिहाद पलता रहे।
बड़े शान और अभिमान
के लिए मरो।
मरो . . .! श्रद्धा मरो . . .!
स्वेच्छा से नहीं तो अनिच्छा से चढ़ो।
ज़बरदस्ती थोपी गई परीक्षा से मरो।
पर मरो।
किसी तरह मरो।
देश के कोने-कोने में,
कभी भी किसी भी रूप में मरो।
कब की मरोगी;
जाने कब मिडिया में उछलोगी?
जीवन में प्राणघातक छिछालेदर में मरो।
क्योंकि नियति है तुम्हारी—
तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ मरने के लिए आई हो।
सपनों के सुनहरे संसार वाले भ्रम के
अतिवादी आत्मविश्वास में,
सही-गलत के द्वंद्वमय बुद्धि छोड़ आई हो।
अपनों का रक्षा-कवच तोड़ आई हो।
पूरी ज़िन्दगी तुम चाह कर भी
इतना विख्यात नहीं हो पाती।
अपने मानवीय अस्तित्व में
फिर उसके बाद किसी पुरुष के
अंतरंग प्रेम और विश्वास के साथ नहीं हो पाती।
संग किसी के
अपने बचाव में आवाज़ कहीं उठा पाती।
टूटे हृदय की वेदना रोकर सुना पाती।
प्रेम की बलिवेदी पर—
ऐसे ही चढ़ो।
माता-पिता, घर-परिवार
के सिसकियों में चढ़ने के लिए;
घोर दुष्कृत्य जनक
राजनीतिक रोटियाँ सेंकने के लिए,
अखबार-मिडिया के
मुख पृष्ठ बनने के लिए
मरो . . .! श्रद्धा मरो . . .!
तुम मरोगी तभी दानवता का
काला साम्राज्य लहराएगा
एक के चले जाने के बाद
अन्य शोषक, तो कोई
शोषित होने भी चला आएगा।
अंतहीन नाम और चेहरे
की पहचान बदल-बदल;
बहादुरी की आड़ में
मेमने की तरह शिकार होने से मत डरो।
मरो . . .! श्रद्धा मरो . . .!
ताकि मृतक-
मूर्ख बुद्धिजीवी
धर्मनिरपेक्षता की संगमरमरी क़ब्र
नित-निरंतर पल्लवित-पुष्पित
सुरक्षित रहे।
उसकी आड़ में
मृत्यु पूजन उद्घोषित रहे।
क़र्ज़ चक्रवृद्धि ब्याज सहित
काफ़िर की बेटी रूप में भरो।
मरो . . .! श्रद्धा मरो . . .!
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टिप्पणियाँ
shaily 2022/11/29 03:41 PM
मार्मिक और सत्य लिखा है आपने। बधाई
कृपया टिप्पणी दें
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सरोजिनी पाण्डेय 2022/11/30 02:29 AM
बाप रे इतना आक्रोश इतनी पीड़ा इतना विक्षोभ !!!!