अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’ – 001 – छह रुबाइयात
शायरी | रुबाई अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’1 Feb 2025 (अंक: 270, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
1)
बहर : हज़ज मुसम्मन अख़रब अख़्र्म अबतर
अरकान : मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊलुन फ़े
तक़्तीअ : 221 1222 222 2
किस ने कहा है ये तोहमत जानेमन
कहते इसे है सब उल्फ़त जानेमन
अब मान भी जाओ के इंसानों को
दी है ख़ुदा ने यह नेमत जानेमन
02)
बहर : हज़ज मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ अबतर
अरकान : मफ़ऊल मुफ़ाईलु मुफ़ाईलुन फ़े
तक़्तीअ: 221 1221 1222 2
मैं पहले मिला उस को किसी महफ़िल में
तब उस से लड़ी आँख उसी महफ़िल में
इर्शाद कहा उस ने ग़ज़ल पर मेरी
जब मैंने पढ़ी थी वो उसी महफ़िल में
03)
बहर: हज़ज मुसम्मन अख़रब
अरकान: मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन
तक़्तीअ: 221 1222 221 1222
आँखों की नमी देखी थी अश्क नहीं देखा
हर ज़ख्म मिरा देखा पर दर्द नहीं देखा
छोड़ो कहाँ समझोगे अब हाल ये तुम मेरा
शब भर मुझे तन्हा तुम ने जागे नहीं देखा
04)
बहर: हज़ज मुसम्मन अख़रब अख़्र्म अबतर
अरकान: मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊलुन फ़े
तक़्तीअ: 221 1222 222 2
करना हमें है जो कर के देखेंगे
इक शोर यहाँ हम कर के देखेंगे
आए या नहीं आए अब तू लेकिन
अब नाम तेरा ले कर के देखेंगे
05)
बहर: हज़ज मुसम्मन अख़रब मजबूब
अरकान: मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल फ़अल
तक़्तीअ: 221 1222 221 12
हालात हुए ग़र और दुश्वार कहीं
ख़ुद को न मैं कर दूँ और बर्बाद कहीं
बेचारगी का कर के इज़हार कफ़स
जीने से न कर दूँ मैं इन्कार कहीं
06)
बहर: हज़ज मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
अरकान: मफ़ऊल मुफ़ाईलु मुफ़ाईलु फ़ऊलुन
तक़्तीअ: 221 1221 1221 122
यह रब्त कहीं बढ़ ने से उलफ़त न हो जाये
इस ज़िन्दगी को उसकी ज़रूरत न हो जाये
है दरमियाँ कुछ हम में नहीं ख़ास मगर अब
होते हुये यह आगे मोहब्बत न हो जाये
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