जान पहचाना ख़्वाब आया है
शायरी | ग़ज़ल अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’15 Feb 2025 (अंक: 271, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
बहर: ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू
अरकान: फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
तक़्तीअ: 2122 1212 22
जान पहचाना ख़्वाब आया है
दिल के दर पर गुलाब आया है
ज़िंदगी में सवाब आया है
बन के वो इक हुबाब आया है
जाते जाते गया तेरा बचपन
आते आते शबाब आया है
फिर किया अनसुना मुझे उसने
फिर पुराना जवाब आया है
दर्दो फ़ुर्क़त उदासी ग़म क्या है
पानी पर कोई हबाब आया है
हाथ से छुट गया है पैमाना
वक़्त शायद ख़राब आया है
था जो पूछा 'क़फ़स' ने चिल्लाकर
उसका चुप में जवाब आया है
हुबाब= मित्र, दोस्त; हबाब=बुलबुला
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