आँसू बहाकर अच्छा लगा
शायरी | ग़ज़ल अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’1 Jun 2025 (अंक: 278, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
बहर: बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब मुरब्बा मुज़ाफ़
अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े
तक़्तीअ: 22 22 22 2
आँसू बहाकर अच्छा लगा
फिर से भीगकर अच्छा लगा
आया है वो अर्से बाद तो
मुझको मिरा घर अच्छा लगा
वैसे तो तू आएगा नहीं
वादा तिरा मगर अच्छा लगा
दैर-ओ-कलीसा या काबे का
हर दीवारों दर अच्छा लगा
ये भी कोई मक़्ता है ‘क़फ़स'
कहा बुरा है पर अच्छा लगा
दैर= मंदिर; कलीसा= गिरजाघर; काबे= मस्जिद
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