फिर कभी न गूँजें तोपें पहाड़ों में
काव्य साहित्य | कविता अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’15 Jan 2020 (अंक: 148, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
कुछ वो आगे बढ़ आए सरहद पर
कुछ हम आगे बढ़ गए सीमा पर
फिर हथियार तन गए–चल गए
न ही तिरंगा लहराया पहाड़ों में
न ही चाँद-तारा छाया पहाड़ों में
फिर गूँज उठी तोपें पहाड़ों में...
एक बेमानी जिहाद थी उनकी ये
और एक व्यर्थ लड़ाई लड़ी हमने
कुछ न दिया इन सियासी चालों ने
क्षत-विक्षत शरीर थे चारों तरफ़
सिर्फ़ अश्क-ओ-ग़म दिये पहाड़ों ने
फिर गूँज उठी तोपें पहाड़ों में...
यहाँ राम नाम गूँजा गलियों में
वहाँ मर्सिये थे कई ज़बानों पे
वहाँ शहीद हुए, यहाँ बलिदान गए
न कोई हारा, न कोई जीता था
बस मानवता हार गई पहाड़ों में
फिर गूँज उठी तोपें पहाड़ों में...
कोई बीवी बेवा हो गयी थी
एक राखी कलाई को तरस गयी
किसी बुज़ुर्ग ने कांधा देना था
किसी माँ ने लाल खोया था
और बचपन खोया किसी ने पहाड़ों में
फिर गूँज उठी तोपें पहाड़ों में...
आओ कुछ ऐसा करें हम-तुम
आधी सदी पीछे जाकर सोचें हम
और प्यार का गुलशन खिलाएँ सीमा पर
और अमन हो, अभय हो सरहद पर
और न बहे लहू किसी का पहाड़ों में
फिर कभी न गूँजे तोपें पहाड़ों में...
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
ग़ज़ल
- अक्सर इस इश्क़ में ऐसा क्यों होता है
- आँसू बहाकर अच्छा लगा
- इब्तिदाई उल्फ़त हो तुम
- इश्क़ को इश्क़ अब कहो कैसे
- जान पहचाना ख़्वाब आया है
- जो ख़ुद नहीं जाना वो जताये नासेह
- तुम मैं और तन्हा दिसंबर
- तुम हो कहाँ, कहाँ हो तुम
- मुझको मोहब्बत अब भी है शायद
- यादों की फिर महक छाई है
- रहमतों का वक़्त आया, मेरे मौला
- वो बहुत सख़्त रवाँ गुज़री है
- सुन यह कहानी तेरी है
नज़्म
कहानी
कविता
रुबाई
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
पाण्डेय सरिता 2021/08/15 05:20 PM
बहुत खूब