क़ुदरत का क़हर
काव्य साहित्य | कविता अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’1 Mar 2025 (अंक: 272, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
मौसम, बे-मौसम की वर्षा में
मैदान तरस गया पानी को
रेगिस्तान हो गया जैसे नहर
बरपा है पृथ्वी पे शहर शहर
क़ुदरत का क़हर शहर शहर
आग उगलता ज्वालामुखी
उड़ती राख धूल और गैस
बह निकली लावा की नहर
बरपा है पृथ्वी पे शहर शहर
क़ुदरत का क़हर शहर शहर
धरती काँपी हिली, डोल गई
ढह गए सारे सीमेंट कांक्रीट
समतल हो गया सारा शहर
बरपा है पृथ्वी पे शहर शहर
क़ुदरत का क़हर शहर शहर
गर्मी बढ़ी जंगल सुलग उठा
ग्लेशियर पिघला सैलाब बना
भूस्खलन के साथ बहा दहर
बरपा है पृथ्वी पे शहर शहर
क़ुदरत का क़हर शहर शहर
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