अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी रेखाचित्र बच्चों के मुख से बड़ों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

अक्सर इस इश्क़ में ऐसा क्यों होता है

 

बहर: बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब मुसद्दस मुज़ाफ़
अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े
तक़्तीअ : 22    22    22    22    22    2
 
अक्सर इस इश्क़ में ऐसा क्यों होता है
जिसे चाहो वो ओर किसी का क्यों होता है
 
उसे चाहा उसे पाया और मिरा हाल ए दिल
कभी ऐसा तो कभी वैसा क्यों होता है
 
वापस आएगा वो शाम से पहले लेकिन
मिरे सीने में यह दर्द जैसा क्यों होता है
 
ग़र हो जाए इश्क़ तो सनम नहीं मिलता
दुनिया में हर बार ऐसा क्यों होता है
 
हँसता है वो और कतरा के निकल जाता है
तेरे साथ में ‘क़फ़स’ ऐसा क्यों होता है

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

 कहने लगे बच्चे कि
|

हम सोचते ही रह गये और दिन गुज़र गए। जो भी…

 तू न अमृत का पियाला दे हमें
|

तू न अमृत का पियाला दे हमें सिर्फ़ रोटी का…

 मिलने जुलने का इक बहाना हो
|

 मिलने जुलने का इक बहाना हो बरफ़ पिघले…

टिप्पणियाँ

हेमन्त 2025/06/04 06:36 PM

इसी जमीन पर- सच के साथ है जो वह अकेला क्यों होता है, रोशनी में भी देखो एक अँधेरा क्यों होता है।- हेमन्त। क़फ़स जी आपकी अच्छी रचना है।----हेमन्त

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल

नज़्म

कहानी

कविता

रुबाई

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं