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जो ख़ुद नहीं जाना वो जताये नासेह

 

बहर: बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब इसरम मक़बूज़ महज़ूफ़
अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
तक़्तीअ: 22    22    22    22    22
 
जो ख़ुद नहीं जाना वो जताये नासेह
उल्फ़त के भेद मुझको बताये नासेह
 
जिक्र तुम्हारे हबीबों का छेड़ा मुझसे
फिर मेरे दिल के दर्द जगाये नासेह
 
इश्क़ो उल्फ़त है हर समझ के बाहर
ये बात कैसे तुम्हें समझाये नासेह
 
लो आ गया घर मेरे वो बिन बुलाये
कोई तरकीब दो कैसे भगाये नासेह
 
है कोई इख़्तियार 'क़फ़स' तेरा इस में
आये तो आये, जाये तो जाये नासेह

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